Book Title: Tattvarthvarttikam Part 1
Author(s): Bhattalankardev, Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 414
________________ ३९१ ॥३४-३५] हिन्दी-सार क्षेत्र है। घातकीखंडको घेरे हुए कालोदधि समुद्र है। कालोदधिके बाद पुष्करवर द्वीप सोलह लाख योजन विस्तृत है। पुष्करवरद्वीपका वर्णन पुष्कराधे च ॥३४॥ आधे पुष्करद्वीपमें भी भरतादिक्षेत्र दो दो हैं। ११ च शब्दसे 'द्विः' इस संख्याको पूर्वसूत्रसे अनुवृत्ति कर लेनी चाहिए। यह द्विगुणता जम्बूद्वीपके भरतादिकी संख्याकी अपेक्षासे है। यद्यपि धातकीखंडका वर्णन अनन्तर निकट है, फिर भी इच्छानुसार जम्बूद्वीपकी संख्यासे ही द्विगुणता लेनी चाहिये। ६२-४ पुष्कराके भरतका आभ्यन्तर विष्कम्भ-४१५७९ योजन और ७३ भाग है। मध्यविष्कम्भ ५३५१२ योजन और १९९ भाग प्रमाण है । बाह्यविष्कम्भ ६५४४२ योजन और १३ भाग प्रमाण है । ५ विदेह तक एक क्षेत्रसे दूसरा क्षेत्र चौगुने विस्तारवाला है। उत्तरके क्षेत्रोंका विस्तार क्रमशः दक्षिणके क्षेत्रोंके ही समान है। पर्वत विजया वृत्तवेदाढय आदिकी संख्या और विस्तार भी दूना दूना है । जम्बूद्वीपमें जहाँ जम्बू वृक्ष है वहाँ पुष्करद्वीपमें पुष्कर है। इसीके कारण इस द्वीपको पुष्करवर द्वीप कहते हैं। ६ मानुषोत्तर पर्वतसे अर्ध विभक्त होनेके कारण इसे पुष्कराध कहते हैं। पुष्करद्वीपके मध्यमें मानुषोत्तर पर्वत है। यह १७२१ योजना ऊंचा ४३० योजन गहरा २२ हजार योजन मूलमें विस्तृत १७२३ योजन मध्यमें विस्तृत ४२४ योजन ऊपर विस्तृत है। यवराशिके समान यह पर्वत नीचे मुख किए हुए बैठे सिंहके सदृश मालूम होता है । उसके ऊपर चारों दिशाओंमें ५० योजन लम्बे २५ योजन चौड़े और ३७३ योजन ऊंचे जिनायतन हैं। इसके ऊपर वैडूर्य आदि चौदह कूट हैं । प्राङ मानुषोत्तरान्मनुष्याः ॥३५॥ मानुषोत्तर पर्वतके इस ओर ही मनुष्य हैं उस ओर नहीं । उपपाद और समुद्धात अवस्थाके सिवाय इस पर्वतके उस ओर विद्याधर या ऋद्धिधारी मनुष्य भी नहीं जा सकते। इसीलिए इसकी मानुषोत्तर संज्ञा सार्थक है। __ आठवाँ नन्दीश्वर द्वीप है। इसका विस्तार ३६३८४००००० योजन है। इसके मध्यमें चारों दिशाओंमें ८४ हजार योजन ऊंचे चार अंजनगिरि है । इसकी चारों दिशाओं में चार चार बावड़ी हैं। ये १ हजार योजन गहरी और एक लाख योजन विस्तारवाली हैं। इन सोलह वापियोंमें दस हजार योजन विस्तृत दधिमुख पर्वत हैं। इन वापियों के चारों ओर चार वन हैं। इन वापियोंके चारों कोनोंमें एक हजार योजन ऊंचे चार चार रतिकर है। इस तरह ६४ रतिकर है। बाहरी कोणोंमें स्थित ३२ रतिकर चा चानगिरि तथा १६ दधिमुख इस तरह ५२ पर्वतों पर ५२ जिनालय हैं । ये जिनालय १०० योजन लम्बे, ५० योजन चौड़े तथा ७५ योजन ऊंचे हैं। ग्यारहवाँ कुण्डलवर द्वीप है । उसके मध्यमें कुंडलवर पर्वत है। उसके ऊपर प्रत्येक दिशामें चार-चार कूट है। इसको घेरे हुए कुण्डलवर समुद्र है। इसके आगे क्रमशः शंखवरद्वीप, शंखवरसमुद्र, रुचकवरद्वीप, रुचकवरसमुद्र आदि असंख्यात द्वीपसमुद्र हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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