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२।४०-४३]
हिन्दी-सार जाते हैं। जैसे 'पटनासे मथुरा परे है' यहां काशी आदि देशोंका व्यवधान होनेपर भी व्यवहित मथुरामें पर शब्दका प्रयोग हो जाता है उसी तरह आहारकसे पर तैजस और तेजससे पर कार्मणमें भी पर शब्दका प्रयोग उचित है।
१६ यद्यपि तैजस और कार्मणमें परमाणु अधिक हैं फिर भी उनका अतिसघन संयोग और सूक्ष्म परिणमन होनेसे इन्द्रियोंके द्वारा उपलब्धि नहीं हो सकती।
अप्रतीघाते ॥४०॥ ये दोनों शरीर सर्वत्र अप्रतीघाती हैं।
६१-३ एक मूतिमान् द्रव्यका दूसरे मूर्तिमान् द्रव्यसे रुक जाना या टकराना प्रतीघात कहलाता है । जैसे अग्नि सूक्ष्म परिणमनके कारण लोहेके पिंडमें भी घुस जाती है उसी तरह ये दोनों शरीर वज्रपटलादिकसे भी नहीं रुकते, सब जगह प्रवेश कर जाते हैं। यद्यपि वैक्रियिक और आहारक भी अपनी-अपनी सीमामें अप्रतीघाती हैं फिर भी लोक भरमें सर्वत्र अप्रतीघाती ये दोनों ही हैं, अतः दोनोंको ही अप्रतीघाती कहा है।
अनादिसम्बन्धे च ॥४१॥ १-२ ये दोनों शरीर अनादिसे इस जीवके साथ हैं। उपचय-अपचयकी दृष्टिसे इनका सादिसम्बन्ध भी होता है, इसीलिए च शब्द दिया है। जैसे वृक्षसे बीज और बीजसे वृक्ष इस प्रकार सन्ततिकी दृष्टिसे बीज-वृक्ष अनादि होकर भी तबीज और तद्वृक्ष की अपेक्षा सादि हैं उसी तरह तैजस कार्मण भी बन्धसन्ततिकी दृष्टिसे अनादि और तत् तत् दृष्टिसे सादि हैं।
३-५ यदि सर्वथा आदिमान् माना जाय तो अशरीर आत्माके नूतन शरीर का सम्बन्ध ही नहीं हो सकेगा, क्योंकि शरीरसम्बन्धका कोई निमित्त ही नहीं है। और यदि निनिमित्त ही शरीरसम्बन्ध होने लगे तो मुक्त आत्माओंके साथ भी शरीरका सम्बन्ध हो जायगा। इस तरह कोई मुक्त ही नहीं रह सकेगा। और यदि अनादि होने से उसे अनन्त माना जायगा; तो भी किसीको मोक्ष ही नहीं हो सकेगा। अतः जैसे अनादिकालीन बीज-वृक्ष सन्तति भी अग्नि आदि कारणोंसे नष्ट हो जाती है उसी तरह कर्मशरीर भी ध्यानाग्निसे नष्ट हो जाता है ।
सर्वस्य ॥४२॥ १-२ ये दोनों शरीर सभी संसारी जीवोंके होते हैं। 'सर्वस्य' यह एक वचन संसारिसामान्यकी अपेक्षा दिया है। यदि ये किसी संसारीके न हों तो वह संसारी ही नहीं हो सकता।
तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्व्यः ॥४३॥ एक जीवके एक साथ इन दो शरीरोंको लेकर चार शरीर तक हो सकते हैं।
६१-६ 'तत्' शब्दसे जिन दो शरीरोंका प्रकरण है उनका ग्रहण करना चाहिए। 'आदि' शब्द व्यवस्थावाची है। 'आङ' उपसर्ग अभिविधिके अर्थमें है, अतः किसी के चार भी हो सकते हैं। यदि मर्यादार्थक होता तो चारसे पहिले अर्थात् तीन शरीरतक का नियम होता । किसी आत्माके दो शरीर तैजस और कर्मण होंगे। तीन औदारिक तेजस
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