Book Title: Tattvarthvarttikam Part 1
Author(s): Bhattalankardev, Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 401
________________ पर सागर ३७८ तत्त्वार्थवार्तिक [३६ प्रस्तार जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति १ सीमन्तक दस हजार वर्ष ९० हजार वर्ष २ निरय ९० हजार वर्ष ९० लाख वर्ष ३ रोरुक १ पूर्व कोटी असंख्यात पूर्व कोटी ४ भ्रान्त असंख्यात पूर्व कोटी पर सागर ५ उद्भ्रान्त ॐ सागर व सागर ६ सम्भ्रान्त १३ सागर पसागर ७ असम्भ्रान्त है सागर सागर ८ विभ्रान्न र सागर * सागर ९ तप्त १५ सागर सागर १० त्रस्त पर सागर सागर ११ व्युत्क्रान्त . सागर सागर १२ अवक्रान्त पर सागर १३ विक्रान्त सागर १ सागर जघन्य स्थितिसे एक समय अधिक और उत्कृष्टसे एक समय कमके समस्त विकल्प रूप मध्य स्थिति है। इसी तरह शर्कराप्रभा आदिमें भी प्रति प्रस्तार जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति समझ लेनी चाहिए। उसका नियम यह है उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिका अन्तर निकालकर प्रतरोंकी संख्यासे उसे विभाजित करके पहिली पृथिवीकी उत्कृष्ट स्थितिमें जोड़नेपर दूसरी पृथिवीके प्रथम पटलकी उत्कृष्ट स्थिति होती हैं। आगे वही इष्ट जोड़ते जाना चाहिए। जैसे शर्कराप्रभाकी उत्कृष्ट ३ सागर और जघन्य एक सागर है। दोनोंका अन्तर २ आया। इसमें प्रतरसंख्या ११ का भाग देने पर, इष्ट हुआ। इसे प्रतिपटलमें बढ़ानेपर अवान्तर पटलोंकी उत्कृष्ट स्थिति हो जाती है। पहिली पहिली पृथिवीकी तथा पहिले पहिले पटलोंकी उत्कृष्ट स्थिति आगे आगेकी पृथिवियों और पटलोंमें जघन्य हो जाती है। उत्पतिका विरहकाल-सभी पृथिवियोंमें जघन्य एक समय और उत्कृष्ट क्रमश: २४ मुहूर्त, सात रात-दिन, एक पक्ष, एक माह, दो माह, चार माह और छह माह होता है। उत्पाद और नियति-असंज्ञी प्रथम पृथिवी तक, सरीसृप द्वितीय तक, पक्षी तीसरी तक, सर्प चौथी तक, सिंह पाँचवीं तक, स्त्रियाँ छठवीं तक और मत्स्य तथा मनुष्य सातवीं पृथिवी सक उत्पन्न होते हैं । देव नरकमें और नारकी देवोंमें उत्पन्न नहीं हो सकते । पहिले नरकमें उत्पन्न होनेवाले मिथ्यात्वी नारक कोई मिथ्यात्वके साथ कोई सासादन होकर और कोई सम्यक्त्वको प्राप्त करके निकलते हैं । पहिली पृथिवीमें उत्पन्न होनेवाले बद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि सम्यग्दर्शनके साथ ही निकलते हैं। द्वितीय आदि पांच नरकोंमें उत्पन्न मिथ्यादृष्टि नारक कुछ मिथ्यात्वके साथ कुछ सासादनके साथ और कुछ सम्यक्त्व प्राप्त करके निकलते हैं। सातवें नरकमें मिथ्यात्वसे ही प्रविष्ट होते हैं तथा मिथ्यात्वके साथ ही निकलते हैं। छठवीं पृथिवी तक नारक मिथ्यात्व और सासादनके साथ निकलकर तिर्यञ्च और मनुष्य दो गतियोंको प्राप्त करते हैं । तिर्यञ्चोंमें पंचेन्द्रिय गर्भज संज्ञी पर्याप्तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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