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अध्यात्म और नियतिवादका सम्यग्दर्शन
प्रत्येक द्रव्यकी शक्तियाँ तथा उनसे होनेवाले परिणमनोंकी जाति सुनिश्चित है। कभी भी पूदगलके परिणमन जीवमें तथा जीवके परिणमन पुद्गलमें नहीं हो सकते। पर प्रतिसमय कैसा परिणमन होगा यह अनियत है। जिस समय जो शक्ति विकसित होगी तथा अनुकूल निमित्त मिल जायगा उसके बाद वैसा परिणमन हो जायगा। अतः नियतत्व और अनियतत्व दोनों धर्म सापेक्ष हैं, अपेक्षा भेदसे सम्भव हैं।
___ जीवद्रव्य और पुद्गल द्रव्यका ही खेल यह जगत है । इनकी अपनी द्रव्यशक्तियाँ नियत हैं। संसारमें किसीकी शक्ति नहीं जो द्रव्यशक्तियोंमेंसे एकको भी कम कर सके या एकको बढ़ा सके । इनका आविर्भाव और तिरोभाव पर्यायके कारण होता रहता है। जैसे मिट्टी पर्यायको प्राप्त पुद्गलसे तेल नहीं निकल सकता, वह सोना नहीं बन सकती, यद्यपि तेल और सोना भी पुद्गल ही बनता है, क्योंकि मिट्टी पर्यायवाले पदगलोंकी बह योग्यता तिरोभूत है, उसमें घट आदि बनने की, अंकुरको उत्पन्न करनेकी वर्तनोंके शुद्ध करनेकी, प्राकृतिक चिकित्सामें उपयोग आनेकी आदि पचासों पर्याय योग्यताएँ विद्यमान हैं। जिसकी सामग्री मिलेगी अगले क्षणमें वही पर्याय उत्पन्न होगी। रेत भी पुद्गल है पर इस पर्याय में घड़ा बननेकी योग्यता तिरोभूत है, अप्रकट है, उसमें सीमेंट के साथ मिलकर दीवालपर पुष्ट लेप करनेकी योग्यता प्रकट है, वह कांच बन सकती है या बही पर लिखी जानेवाली काली स्याहीका शोषण कर सकती है। मिट्टी पर्यायमें ये योग्यताएँ अप्रकट है। तात्पर्य यह कि :--
(१) प्रत्येक द्रव्यकी मूलद्रव्यशक्तियाँ नियत हैं उनकी संख्यामें न्यूनाधिकता कोई नहीं कर सकता। पर्यायके अनसार कुछ शक्तियां प्रकट रहती है और कुछ अप्रकट । इन्हें पर्याय योग्यता कहते हैं। (२) यह नियत है कि चेतन का अचेतनरूप से तथा अचेतनका चेतनरूपसे परिणमन नहीं हो सकता। (३) यह भी नियत है कि एक चेतन या अचेतन द्रव्यका दूसरे सजातीय चेतन या अचेतन द्रव्य रूपसे परिणमन नहीं हो सकता। (४) यह भी नियत है कि दो चेतन मिलकर एक संयक्त
पुक्त सदृश पर्याय उत्पन्न नहीं कर सकते जैसे कि अनेक अचेतन परमाणु मिलकर अपनी संयक्त सदश घट पर्याय उत्पन्न कर लेते हैं । (५) यह भी नियत है कि द्रव्यमें उस समय जितनी पर्याय योग्यताएँ हैं उनमें जिसके अनकूल निमित्त मिलेंगे वही परिणमन आगे होगा, शेष योग्यताएँ केवल सद्भावमें रहेंगी। (६)यह भी नियत है कि प्रत्येक द्रव्यका कोई न कोई परिणमन अगले क्षणमें अवश्य होगा। यह परिणमन द्रव्यगत मूल योग्यताओं और पर्यायगत प्रकट योग्यताओंकी सीमाके भीतर ही होगा बाहर कदापि नहीं। (७) यह भी नियत है कि निमित्त उपादान द्रव्य की योग्यताका ही विकास करता है, उसमें नूतनसर्वथा असद भूत परिणमन उपस्थित नहीं कर सकता। (८) यह भी नियत है कि प्रत्येक द्रव्य अपने अपने परिणमनका उपादान होता है। उस समयकी पर्याययोग्यतारूप उपादानशक्तिकी सीमाके बाहिरका कोई परिणमन निमित्त नहीं ला सकता। परन्तु---
(१) यही एक बात अनियत है कि 'अमुक समयम अमुक परिणमन ही होगा।' मिट्टीकी पिडपर्यायमें घड़ा सकोरा सुराई दिया आदि अनेक पर्यायोंके प्रकटानकी योग्यता है। कुम्हारकी इच्छा और क्रिया आदिका निमित्त मिलनेपर उनमें से जिसकी अनकूलता होगी वह पर्याय अगले क्षणमें उत्पन्न हो जायगी। यह कहना कि 'उस समय मिट्टीकी यही पर्याय होनी थी, उनका मेल भी सद्भाव रूपसे होना था, पानीकी यही पर्याय होनी थी' द्रव्य और पर्यायगत योग्यताके अज्ञानका फल है।
नियतिवाद नहीं-जो होना होगा वह होगा ही, हमारा कुछ भी पुरुषार्थ नहीं है, इस प्रकारके निष्क्रिय नियतिवादके विचार जैनतस्वस्थितिके प्रतिकूल है। जो द्रव्यगत शक्तियां नियत हैं उनमें हमारा कोई पुरुषार्थ नहीं, हमारा पुरुषार्थ तो कोयलेकी हीरापर्यायके विकास कराने में है। यदि कोवलेके लिए उसकी हीरापर्यायके विकासके लिए आवश्यक सामग्री न मिले तो या तो वह जलकर भस्म बनेगा या फिर खानिमें ही पड़े पड़े समाप्त हो जायगा। इसका यह अर्थ नहीं है कि जिसमें उपादान शक्ति नहीं है उसका परिणमन भी निमित्तसे हो सकता है या निमित्तम यह शक्ति है जो निरुपादानको परिणमन करा सके।
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