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तत्त्वार्थसूत्र
(आचार्य उमास्वामी) * कम से कम लिखकर अधिक से अधिक प्रसिद्धि पाने वाले आचार्य हैं। * कुन्दकुन्द आचार्य के पट्ट शिष्य थे। * विक्रम की प्रथम शताब्दी का अंत एवं द्वितीय का पूर्वार्ध आपका समय है। * उमास्वाति एवं गृद्धपिच्छाचार्य भी आपके अन्य नाम हैं। * प्राचीन जैनाचार्य अपने बारे में कुछ नहीं लिखते थे। अतएव आपके जीवन ' परिचय से जैन समाज अपरिचित है।
.. तत्त्वार्थसूत्र) * यह संस्कृत भाषा का सर्वप्रथम जैन ग्रंथ है। * समग्र जैन समाज में प्रामाणिकता प्राप्त ग्रंथ है। * जो महत्त्व वैदिकों में गीता, ईसाइयों में बाईबल तथा मुसलमानों में कुरान का
हैं; वही जैनदर्शन में तत्त्वार्थसूत्र का है। * जिनागम के लगभग सम्पूर्ण विषयों की “सूची" इस ग्रंथ में सूत्ररूप में उपलब्ध
है। अतः इसे सूची ग्रन्थ भी कहा जा सकता है। * इसका संकलन इतना सुसम्बद्ध एवं प्रामाणिक साबित हुआ कि यह महावीर ... भगवान की वाणी की तरह जैन दर्शन का आधार सिद्ध हुआ। * सच्चे शास्त्र का उपलक्षण या प्रतिनिधि ग्रन्थ है। * सारे भारतवर्ष के जैन परीक्षा बोर्डो के पाठ्यक्रम में और जैन विद्यालयों
· में निर्धारित है। . * इसमें कुल 357 सूत्र हैं।
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