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. अध्याय -- 1. हमारा जीवन और स्वास्थ्य
नो.
स्वास्थ्य का महत्त्व स्वस्थ जीवन मानव की सर्वोच्च आवश्यकता है। अच्छे स्वास्थ्य के बिना मानव न तो शान्त, सुखी, आनन्दित जीवन-यापन कर सकता है और न ही अपने लक्ष्यों की पूर्ति आसानी से कर सकता है। अस्वस्थ शरीर सुखी जीवन को दुःखी बना सकता है. इसी कारण तो-कहावत प्रचलित हे "पहला सुख निरोगी काया। यह बात इस परिप्रेक्ष्य में सच साबित होती है। स्वास्थ्य जो तन, मन और आत्मा के एक • सन्तुलित, अनुशासित, समन्वय का प्रतीक है, कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसे बाजार से
खरीदा जा सके अथवा उधार लिया जा सके या चुराया जा सके। ये सारी बातें , जानते, मानते और समझते हुए भी आज का मानव कितना स्वस्थ एवं सुखी है, प्रायः किसी से अज्ञात नहीं है। प्रत्येक मानव दीर्घायु बन आजीवन स्वस्थ रहना चाहता है, परन्तु चाहने मात्र से तो स्वास्थ्य प्राप्त नहीं हो जाता। यदि हमें स्वस्थ रहना है तो रोग पैदा करने वाले कारणों से अपने.आपको दूर रखना होगा। .
स्वास्थ हेतु क्षमताओं का . सदुपयोग आवश्यक .. ... .
स्वस्थ रहने के लिए यह जानना आवश्यक है कि स्वास्थ्य क्या है? स्वस्थ कौन होता है? रोग क्या है? रोग क्यों, कब और किसे होता है? हमें उन सभी कारणों
को जानना और समझना आवश्यक है जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हमारा स्वास्थ्य .बिगाडने में सहायक बनते हैं। हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता. घटाते हैं। शरीर, मन
और आत्मा के विकारों को बढ़ाते हैं। उनका आपसी सन्तुलन बिगाड़ते हैं, स्वस्थ रहना भी एक कला है, एक विज्ञान है, एक दृष्टि, सोच अथवा चिन्तन का प्रतिफल है जिसके लिए विवेकपूर्ण उचित ज्ञान, साधना और सम्यक पुरूषार्थ अनिवार्य है। प्राप्त क्षमताओं का अधिकाधिक प्राथमिकता के आधार पर उपयोग कर तथा स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले विकारों से अपने आपको बाचाकर ही हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। एक तरफ तो हम चिकित्सा करें और दूसरी तरफ असंयम में रहें, इन्द्रियों में आसक्त बने रहें, तो स्वास्थ्य कैसे प्राप्त होगा? जीवन के साथ मृत्यु निश्चित हैं। जन्म के साथ आयुष्य के रूप में श्वास यानी प्राण ऊर्जा का जो खजाना लेकर हम
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