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- सिद्धान्तानुसार स्वतंत्र निदान आवश्यक
अपने सिद्धान्तों के आधार पर स्वतंत्र निदान न करने से वैकल्पिक . . . चिकित्सक की प्रभावशीलता कम हो जाती है। उदाहरण के लिए आयुर्वेद के । सिद्धान्तानुसार रोग. का कारण शरीर में वात, कफ और पित्त का असन्तुलन होता है। पुराने अनुभवी आयुर्वेद के विशेषज्ञ नाड़ी की गति देख शरीर में वात, कफ और पित्त के असंतुलन से उत्पन्न विकारों को आसानी से पता लगा लेते, परन्तु आज के आयुर्वेदाचार्य न तो नाड़ी विज्ञान के अनुसार निदान ही करते हैं और न अधिकांश वैद्यों को उसका अनुभव परख ज्ञान ही होता है। आयुर्वेद में पहले रोगों की लम्बी-चौड़ी नामावलियाँ नहीं थी और न उसके अनुरूप (पेचीदा) उपचार की विष्टि .. गयाँ ही थी। दवाईयों के माध्यम से दी जाने वाली जड़ी बूटियाँ शुद्ध एवं सात्विक .. होती थी। क्योंकि वे प्राकृतिक वातावरण से ही प्राप्त होने से ऊर्जा से ओतप्रोत व प्रभावशाली होती थी। उनमें रोग को जड़मूल से समाप्त करने की क्षमता होती थी। वैद्य स्वयं दवा का निर्माण करता था । अतः उसके भावों की तरंगों का भी उस पर .. प्रभाव होता था। परन्तु आयुर्वेद में भी आज जो दवाइयां उपलब्ध होती हैं, उनका निर्माण प्राय: कारखानों में होता है। अत: वे पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होती एवं उनमें
शरीर के अवयवों को सनतुलित करने की क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है। कारखानों . में बनने वाली दवाओं का कानूनन परीक्षण मूक प्राणियों पर अनिवार्य होता है। अतः उन बेजुबान जानवरों पर क्रूरता, निर्दयंता होने से उनकी बददुवाओं की तरंगें दवा लेने वालों को प्रभावित किए बिना नहीं रहती। अर्थात् मूल सिद्धान्त के अनुसार निदान और उपचार न करने से उपचार की प्रभावशीलता कम हो जाती है। - एक्यूप्रेशर की रिफ्लेक्सोलॉजी एवं सुजोक चिकित्सा पद्धति के सिद्धान्तानुसार हथेलियों और पगलियों में हमारे शरीर की समस्त नाड़ियों के प्रतिवेदन बिन्दु होते हैं। हथेली और पगथली के जिस भाग में दबाव देने से दर्द या पीड़ा का अनुभव होता है, वहाँ विजातीय तत्वों के जमाव होने की सम्भावना रहती है तथा उनके कारण उनसे सम्बन्धित शरीर के भाग में ऊर्जा का प्रवाह अन्सतुलित हो जाता है, जो 'स्वास्थ्य की भाषा में रोग होता है। एक-सा दबाव देने पर जहाँ ज्यादा दर्द करने .. वाले प्रतिवेदन बिन्दुओंका रोग से सीधा सम्बन्ध होता है तथा कम दर्द वाले प्रतिवेदन .
बिन्दुओं का सम्बन्ध रोग के परोक्ष कारणों से होता है। दर्द वाले सारे प्रतिवेदन बिन्दु • रोग के पारिवारिक सदस्य होते हैं परन्तु आज एक्यूप्रेशर थैरेपिस्ट भी निदान के मूल
सिद्धान्तों से हट कर मात्र रोग से प्रत्यक्ष प्रभावित अंगों के प्रतिवेदन बिन्दुओं का उपचार हेतु निर्धारण करते हैं। सीमित प्रतिवेदन बिन्दुओं पर उपचार करने से प्रभावशाली एक्यूप्रेशर का प्रभाव भी सीमित हो जाता है। कहने का आशय यही है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति को अत्यधिक महत्त्व मिलने से अन्य वैकल्पिक
पादु
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