Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 83
________________ मुस्कुराहट आ नहीं सकती। अतः जब भी तनाव की स्थिति उत्पन्न हो, एकान्त में दर्पण के सामने खड़े हो कृत्रिम रूप से मुस्कुराने अथवा हँसने से तनाव शान्त हो जाता है। हास्य चिकित्सा का यही सिद्धान्त है। संक्षेप में सुखी मनुष्यों से प्रेम, दुःखियों के प्रति करूणा भाव, गुणीजन और पुण्यात्माओं के प्रति प्रसन्नता और पापियों के प्रति उदासीनता की भावना से तनाव कम हो जाता है। ... .......... सभी रोगों की जड़ है मन और मस्तिष्क कारण चाहे जो हो मानसिक विकार प्राकृतिक जीवन-यापन में बाध्य बन शरीरं को रोगग्रस्त, इन्द्रियों को उत्तेजित कर मन को आकुल-व्याकुल और अशान्त बनाते हैं। परिणामस्वरूप जीवनी शक्ति का तीव्रता से ह्यस होता है और रोग प्रतिरोध कि क्षमता क्षीण होने लगती है। रोग असंयमी के साथ उसी प्रकार लगे रहते हैं, जिस प्रकार धुंए के साथ अग्नि । प्रायः कोई भी रोग ऐसा नहीं, जिसकी जड़ मस्तिष्क में . न हो और जो असंयम, कुण्ठाओं, बुरी भावनाओं, दुर्वासनाओं से वर्तमान अथवा . भूतकाल में पोषित न हुआ हो? मानसिक स्वास्थ्य और मनोबल दोनों जुड़े हुए हैं।. यदि मनोबल टूटता है तो मन का स्वास्थ्य भी खराब हो जाएगा। . जिसका मन शुद्ध, निर्विकार और निरोगी होता है, उसके पाचन, स्नायु आदि संस्थान भी सशक्त होते हैं। उनका रक्त इतना सक्षम और शुद्ध होता है कि शरीर में उत्पन्न, विद्यमान तथा आने वाले सभी प्रकार के रोगों को परास्त एवं नष्ट करने की प्रतिरोधक क्षमता रखता है। अतः मानसिक निर्मलता से बढ़ कर न तो कोई शक्शिाली दवा ही होती है और न ही रोग निवारक अमोघ औषधि। . . . आवेग का शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव ... शरीर में हजारों मर्म स्थल होते हैं। ये मर्म स्थल ऊर्जा के आदान-प्रदान के माध्यम होते हैं तथा सम्बन्धित ऊर्जा की अभिव्यक्ति करते हैं तथा वृत्तियों को प्रकट करते हैं। प्रत्येक अभिव्यक्ति का शरीर में एक निश्चिम स्थान होता है। जैसे ही क्रोध | आता है, तो शरीर में उत्तेजना पैदा होने लगती है। एक लहर की तरंग उठ निश्चिम स्थान पर पहुँच क्रोध संवदेन में बदल जाता है और शारीरिक प्रक्रिया आरम्भ होने लगती है। जैसे आँखे लाल होना, आवाज बदल जाना, जोश आना आदि। ऐसे समय यदि हम सजग हो जाएँ, स्नायु संस्थान पर अपना नियंत्रण रखे, अन्दर से उठने वाले आवेगों के साथ असहयोग करने का निर्देश दें तो अन्दर कितनी ही वृत्तियाँ क्यों न उभरें, उनका प्रभाव बाहर नहीं आ सकता। किसी भी प्राणी का व्यवहार उसकी नाड़ी तंत्र अथवा शरीर की गतिविधियों से जाना जा सकता है। नाड़ी तंत्र की तुलना टेलीफोन व्यवस्था से की जा सकती है, जिसमें मस्तिष्क का कार्य टेलीफोन एक्सचेंज के जैसा होता है, . जिसमें . . . . 82 . . ।

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