Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 85
________________ 3. 5. 6. 7. 8. एक कागज पर लिख कर जेब में रखें -'मुझे क्रोध आ रहा है। जब भी क्रोध आए, उसे निकालकर बार-बार पढ़ें। अपमानजनक, व्यंग्यात्मक अथवा निन्दा सुनने से क्रोध आने पर अपने आपको अनुपस्थित समझो और चिन्तन करो यदि मैं नहीं होता तो उस बात का जवाब कौन देता? wwwww क्रोध आने पर उल्टी गिनती गिनना प्रारम्भ करें। यदि कोई बड़ा व्यक्ति छोटा व्यक्ति पर क्रोध करे तो सोचो, अगर मुझ पर क्रोध नहीं करेगा तो किस पर करेगा । यदिः छोटा व्यक्ति क्रोध करे तो उसे विवेकहीन समझ प्रतिक्रिया मत करो। क्रोध का प्रसंग उत्पन्न करने वाले वातावरण से अपने आपको अलग कर लो। अपने आपको, अपनी वृत्तियों को पढ़ें, समझें और आत्म निरीक्षण कर स्वदोष ढूँढें । क्रोध के समय सजग एवं स्वविवेक जाग्रत रखने से, गुस्से का प्रभाव क्षीण हो जाता है। भय का स्वास्थ्य पर प्रभाव अनिष्ट की आशंका ही भय और चिन्ता का मूल कारण होती है। चिन्ता तो चिता के समान होती है । चिता तो मुर्दे को जलाती है, परन्तु चिन्ता जीवित व्यक्ति को अन्दर ही अन्दर जला देती है। चिन्ता से पाचन बिगड़ता हैं, रक्तचाप प्रभावित होता है। मस्तिष्क, स्नायु एवं हृदय रोग होने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं तथा समय से पूर्व ही वृद्धावस्था के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। निद्रा और भूख भी प्रभावित होने लगती है । भय से हृदय और स्नायु की सामान्य गति भी प्रभावित होती है। वाणी अवरूद्ध हो जाती है। शरीर में कम्पन होने लगता है। ज्ञानेन्द्रियों की संबदेना सुप्त हो जाती है तथा गम्भीर स्थितियों में तो भय के आघात से मृत्यु तक हो सकती है। भय, चिन्ता, क्रोध आदि मनुष्य की समस्त ऊर्जाओं को सोख लेते हैं । ईर्ष्या और द्वेष . ईर्ष्या जलन व क्रोध को जन्म देती है जिससे व्यक्ति अन्दर ही अन्दर कुढ़ता रहता है। परिणामस्वरूप सामने वाले का तो कुछ भी नहीं बिगड़ता, परन्तु अपने स्वास्थ्य की हानि होती है। शुत्र तो उल्टा, ईर्ष्या करने वाले को दुःखी देख प्रसन्न होता है । अतः इस मानसिक विकार से बचना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। अहंकार अपनी प्रशंसा सुनना प्रत्येक व्यक्ति को अच्छा लगता है। अहंकार स्वयं 84

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