Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 63
________________ चेतना के विकास पर कर्मों का प्रभाव . - जैसे दूध में मक्खन और घी होता है। तिल के कण-कण में तेल और चिकनाई होती है। ईंधन के प्रत्येक भाग में अग्नि का अस्तित्व होता हैं। ठीक उसी । प्रकार आत्मा में बीज रूप में अनन्त शक्तियाँ होती है, परन्तु कर्मों के प्रभाव से उसका विकास, अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न होती है। ज्ञानावरणीय कर्मों के क्षयोपशम के अनुसार जीव को बुद्धि, ज्ञान और प्रज्ञा की प्राप्ति होती है। दर्शनावरणीय कर्मों के अनुसार हमें सोचने, समझने, चिन्तन, मननं और विश्वास करने की दृष्टि मिलती है। जानते और मानते हुए भी सनातन सत्य पर विश्वास नहीं होता। 'सच्चा सो मेरा' के स्थान पर जो मैं कर रहा हूँ, सोच रहा हूँ, वही सत्य है तथा उसी के अनुसार सही गलत की वास्तविकता समझ आचरण करने लगता है। गलत को सही मानकर विश्वास करने से ऐसे व्यक्तियों को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में पुरूषार्थ करने के बावजूद हमेशा सफलता नहीं मिलती। .. वेदनीय कर्मों के अनुसार जीवन में सुख-दुःख, संयोग-वियोग, दर्द, पीड़ा, स्वस्थता, रोग आदि मिलते हैं। मोहनीय कर्म के आवरण से राग-द्वेष, आसक्ति के भाव पैदा होते हैं। नाम कर्म के अनुसार जीव को शरीर का वर्ण, गन्ध T, रूप, गठन, बल, विकास आदि प्राप्त होते हैं। गोत्रं कर्म के अनुसार योनि, जाति, परिवार उच्च या नीच कुल आदि आसपास का वातावरण प्राप्त होता है। अन्तराय कर्म के उदय से विकास एवं सुखद अनुकूल परिस्थितियों की प्राप्ति में अवरोध आता है। जिसके परिणामस्वरूप योग्यता होते हुए और सम्यक् पुरूषार्थ करने के बावजूद . इच्छित लक्ष्य की प्रप्ति में कुछ न कुछ बाधाएं उपस्थित हो जाती हैं। आयुष्य कर्म के अनुसार निश्चित अवधि के लिए जीव को किसी भी योनि के अनुरूप शारीरिक व्यवस्था मिलती है। व्यक्ति के आयुष्य का निर्धारण इसी कर्म के . आंध र पर होता है। इसलिए सभी का आयुष्य एक-सी नहीं होता। कोई गर्भकाल अथवा बाल्यावस्था में ही मर जाता है तो अन्य को दीर्घ आयुष्य मिलता है। अर्थात् कर्मों का आत्मा पर जैसा-जैसा आवरण होता है, वैसी-वैसी जीव को योनि, इन्द्रिया, मन और चेतना के विकास की अवस्था प्राप्त होती है। आयुष्य समाप्ति अथवा पूर्ण होने पर मृत्यु से सम्बन्धित रोग, दुर्घटना अथवा अन्य परिस्थितियों का निर्माण नियति द्वारा होता है और व्यक्ति को बचाने के सारे प्रयास असफल हो जाते हैं। यदि आयुष्य प्रबल है तो व्यक्ति बड़ी से बड़ी दुर्घटना, रोग एवं मृत्यु के अन्य कारण एवं परिस्थितियाँ होने के बावजूद नहीं मरता। कर्म सिद्धान्त पर श्रद्धा आवश्यक अज्ञान सभी दुःखों का मूल है। जो आत्मा, कर्म और पुनर्जन्म पर विश्वास ___..- नहीं करते, उन्हें सर्वप्रथम इन तथ्यों पर बिना पूर्वाग्रह अनेकान्त दृष्टिकोण से सम्यक्

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