Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 74
________________ रोम-राम श्वासोच्छवास की प्रक्रिया स्पष्ट देखी जा सकती है। अकाल मृत्यु के समय अपने पूर्व में निर्धारित श्वासों का भोग त्वचा द्वारा भोग कर ही पूर्ण करता है। कभी-कभी हम देखते हैं कि जब किसी छिपकली की पूँछ शरीर से अलग हो जाती है तो कुछ समय तक उसमें स्पन्दन होता रहता है। . प्राणों की विविधता के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति में देखने, सुनने, समझने, बोलने, चिन्तन और मनन करने, अभिव्यक्ति आदि की क्षमता अलग-अलग होती है। आधुनिक विज्ञान के पास चेतना का नियंत्रण न होने से उपचार द्वारा कान, आँख आदि इन्द्रियों के द्रव्य उपकरणों में उत्पन्न खराबी को ही दूर किया जा सकता, .परन्तु उन इन्द्रियों में प्राण ऊर्जा का अभाव होता है, तो डाक्टर कुछ नहीं कर सकता। इसी कारण नेत्रहीनों को नेत्र प्रत्यारोपण द्वारा रोशनी नहीं दिलाई जा सकती और न सभी मूक एवं बधिर उपकरण लगाने के बावजूद बोल अथवा सुन सकते हैं। भौतिक ऊर्जा और प्राण ऊर्जा में अन्तर ___ मानव शरीर में उपलब्ध ऊर्जाओं को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम चैतन्य या प्राण ऊर्जा एवं दूसरी भौतिक या जड़ ऊर्जा जिस ऊर्जा के निर्माण, वितरण, संचालन और नियंत्रण हेतु चेतना की उपस्थिति आवश्यक होती है, उस ऊर्जा को प्राण ऊर्जा और बाकी सभी ऊर्जाओं को जड़ अथवा भौतिक ऊर्जा कहते हैं। शरीर में जब तक आत्मा अथवा चेतना रहती है, तब तक प्राण ऊर्जा क्रियाशील होती है, परन्तु उसकी अनुपस्थिति अर्थात् मृत्यु के पश्चात् प्राण ऊर्जा के अभाव में अचेतन शरीर का कोई महत्त्व नहीं होता उल्टे उसकी उपस्थिति वातावरण को प्रदूषित करने लगती है। अतः स्पष्ट है कि जो साधन प्राण ऊर्जा का अनावश्यक दुरूपयोग अथाव अपव्यय होगा, हम रोगों को आमंत्रित करेंगे। प्राण अमूल्य है, अतः हमें स्वयं के प्राणों की रक्षा के साथ अन्य प्राणियों की हत्या में सहयोगी नहीं बनना चाहिए। · प्राण ऊर्जा का सदुपयोग आत्मिक आनन्द और सच्ची शान्ति रोग मुक्ति तो प्राण ऊर्जा के सदुपयोग . से ही प्राप्त होती है। यही प्रत्येक मानव के जीवन का सही लक्ष्य होता है। प्रतिक्षण हमारे प्राणों का क्षय और निर्माण हो रहा है। प्राण ओर पर्याप्तियों का परस्पर सम्बन्ध न जानने से कोई भी व्यक्ति न तो प्राणों का दुरूपयोग अथवा अपव्यय ही रोक सकता है और न अपने आपको निरोग ही रख सकता है। मन, वचन, काया एवं पाँचों इन्द्रियों का उपयोग जितना संयमित, आवश्यकतानुसार कम से कम करेंगे, उतना उनकी प्राण ऊर्जा का क्षय कम होगा। तेज रोशनी में देखना, टी.वी.. सिनेमा आदि देखना, कोलाहल के बीच रहना, अकारण बोलना एवं हलन चलन तथा गलत ..... 73 ...

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