Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 76
________________ दो बातें प्रमुख हैं। 1. द्रव्य (जड़) . 2. भाव (चेतना) .. द्रव्य का सम्बन्ध शरीर के जड़ तत्त्वों से होता है। जैसे आँखं एवं उसकी . बनावट तथा उसके विभिन्न विभागों का व्यवस्थित होना। बिना द्रव्य (जड़) आंखे 'भौतिक जगत् के दृश्यों को देखा नहीं जा सकता? ठीक उसी प्रकार आँखों में चैतन्य ऊर्जा अर्थात् चेतना के अभाव में भी नहीं देखा जा सकता। इसी कारण नेत्रहीन भौतिक आंखें उपलब्ध होने के बावजूद नहीं देख सकते। आँख से देखने के लिए द्रव्य उपकरण का ठीक, व्यवस्थित होना जितना आवश्यक होता है, उतना ही चक्षु • इन्द्रिय प्राण का होना अनिवार्य होता है। आज के स्वास्थ्य विज्ञान ने द्रव्य आँखों के विकारों सम्बन्धी रोग हो तो, उनको ठीक करने में तो सफलता प्राप्त की है, परन्तु यदि आँखों में देखने की शक्ति ही न हो तो, अच्छे से अच्छा नेत्र चिकित्सक उस नेत्रहीन को दृष्टि नहीं दिला सकता। इसी प्रकार जिन जीवों की द्रव्य इन्द्रियाँ (जड़ उपकरण) नहीं होती वे जीव उस इन्द्रिय का भाव प्राण (चेतना) होते हुए भी उपयोग नहीं कर पाते। जैसे चार इन्द्रिय वाले जीवों के कान नहीं होने से वे सुन नहीं सकते। तीन इन्द्रिय वाले जीवों के आँख और कान की द्रव्येन्द्रियाँ न होने से ऐसे जीव न तो देख सकते हैं और न सुन ही सकते हैं। साथ ही जिनके भाव इन्द्रियाँ नहीं होती उनके द्रव्य इन्द्रियों के उपकरण लगाने से भी इन्द्रियाँ क्रियाशील नहीं हो सकती? . शरीर में चैतन्य ऊर्जा की उपलब्धता कर्मों की स्थिति के अनुसार होती है। जिस ऊर्जा का दुरूपयोग किया जाता है, भविष्य में उसका अभाव रहना निश्चित है। इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक अंगों और इन्द्रियों की क्षमताएं अलग .. अलग होती है। जिनके आँखें कमजोर होती हैं, उन्होंने पूर्व जन्म अथवा भूतकाल में आँखों का दुरूपयोग किया हुआ होता है। अतः आँखों का अधिकाअधिक सदुपयोग करने से आँखों सम्बन्धी कर्मों का क्षय हो जाने से, आँखों में चैतन्य ऊर्जा का प्रवाह बढ़ने लगता है। एवं परघटित होता है। अतः उपचार करते समय इन्द्रियों मन, वाणी और आत्मा में विकार बढ़ाने वाली, कर्म बन्धन में सहायक प्रवृत्तियों से अपने आपको यथासम्भव बचाना सर्वाधिक आवश्यक होता है। प्राण ऊर्जा का सन्तुलित रूपान्तरण जीवन ... संचालन हेतु आवश्यक हमारे शरीर का संचालन पूर्णतया आपसी सहयोग, तालमेल और समन्वय से होता है। शरीर के सभी अंगों और मस्तिष्क का कार्य अलग अलग होता है। प्रत्येक कार्य के लिए ऊर्जा जरूरी है। अतः उसके लिए अलग-अलग प्रकार की विशेष ऊर्जाओं की आवश्यकता होती है, जिनका रूपान्तरण प्राण ऊर्जा, प्रकाश, अग्नि एवं अन्य भौतिक ऊर्जाओं में किया जा सकता है जिससे प्रकाश, गर्मी, ठण्डक, वाहनों 75

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