Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 70
________________ अध्याय - 8 शरीर में ऊर्जा हो तो स्वस्थ रहिएगा शारीरिक ऊर्जा के मूल स्रोत–पर्याप्तियां संसार में दो तत्त्व ही मुख्य होते हैं। प्रथम जीव अथवा आत्मा और दूसरा अजीव, जड़ या अचेतन । इन दो तत्त्वों से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की संरचना होती है। जिनमें आहार करने, शरीर रचना करने, इन्द्रियों का निर्माण करने तथा श्वांस लेने की क्षमता होती है, वे ही जीव कहलाते हैं। ये चारों मूल शक्तियाँ जीव के आवश्यक मापदण्ड होती हैं। अर्थात् जिनमें उपर्युक्त शक्तियों का अभाव होता है, वे निर्जीव कहलाते हैं। इसी कारण निर्जीव को दर्द, पीड़ा, वेदना आदि का अनुभव नहीं होता। पर्याप्ति संसारी आत्मा की चेतना की ऊर्जा का लक्षण है। माँ के गर्भ में बच्चे का विकास कैसे होता है? क्या यह एक सामान्य रासायनिक क्रिया मात्र है? . भाषा शक्ति अर्थात वाणी और चिन्तन शक्ति सभी जीवों में नहीं होती, क्योंकि वे चेतना के विकास की अवस्थाएँ होती है। माँ के गर्भ में आते ही कर्मों की स्थिति के अनुसार जीव को विशेष प्रकार की ऊर्जा प्राप्त होती है, जिसके द्वारा जीव आहार को शरीर एवं इन्द्रियों के रूप में परिवर्तित कर सकता है। इस परिगमन करने की जीवनदायिनी चेतना की मूलं ऊर्जा को जैन धर्म में पर्याप्ति कहते हैं। पर्याप्ति के अभाव में पंच महाभूत तत्व शरीर का निर्माण नहीं कर सकते। . - मानव जीवन में आहार, शरीर और इन्द्रिय पर्याप्ति के साथ-साथ श्वासोश्वास, भाषा और मन पर्याप्तियाँ भी अन्य योनियों के जीवों की तुलना में विकसित अवस्था में उपलब्ध होती हैं। श्वासोच्छवास पर्याप्ति से ही जीव वायुमण्डल से श्वसन योग्य पुद्गलों को ग्रहण कर शरीर के लिए आवश्यक विभिन्न ऊर्जाओं में रूपान्तरण करता है। जिसके कारण सभी इन्द्रियां, अवयव और अंग-उपांग अपना अपना कार्य स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं। भाषा पर्याप्ति के कारण ही मनुष्य का जीव भाषा योग्य सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण कर बोलने की क्षमता पैदा करता है। जिन जीवों 69 .

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