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अध्याय - 7. .... स्वास्थ्य अच्छा रखना हो तो
आध्यात्मिक होइए
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स्वास्थ्य का सम्यक् दर्शन , सम्यक् दर्शन का सीधा-सादा सरल अर्थ होता है - सही दृष्टि, सत्य दृष्टि, सही विश्वास । अर्थात् जो वस्तु जैसी है, जितनी महत्त्वपूर्ण है, जितनी उपयोगी है, उसको उसके स्वरूप, गुण एवं धर्म के आधार पर जानना, मानना और उसके अनुरूप आचरण करना । सम्यक् दर्शन से स्वविवेक जाग्रत होता है। स्वदोष दर्शन की प्रवृत्ति विकसित होती है। आत्मा और शरीर का भेद ज्ञान होता है। आत्मा का साक्षात्कार होने से उसकी अनन्त शक्ति का भान होने लगता है।
सम्यक् दर्शन होने पर व्यक्ति में पूर्वाग्रह एवं एकान्तवादी दृष्टिकोण समाप्त होने लगेगा। रोग में रोगी स्वयं की भूमिका ढूँढ़ेगा एवं रोग के कारणों से बचने हेतु सजग एवं सक्रिय रहेगा। रोग होने की स्थिति में उसके लिए दूसरों को दोष देने के बजाय, स्वयं की गलतियों को ही रोग का कारण मानेगा तथा धैर्य और सहनशीलता प्रर्वक उसका उपचार करेगा। उपचार कराते समय तात्कालिक राहत से प्रभावित नहीं होगा, दुष्प्रभावों की उपेक्षा नहीं करेगा। उपचार कराते समय उसमें काम में लिए जाने वाले साधन, सामग्री की पवित्रता का ध्यान रखेगा। अपने उपचार हेतु, अन्य प्राणियों के साथ प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से हिंसा, क्रूरता, निर्दयता का आचरण न तो स्वयं करेगा, न करवाएगा और न करने वालों को प्रोत्साहन देगा। यथार्थ दृष्टिकोण जीवन निर्माण की सबसे प्राथमिक आवश्यकता है कि व्यक्ति की जैसी सोच, दृष्टि होगी वैसे ही उसके जीवन की सृष्टि होगी। सम्यक् दर्शन जीवन का प्राण है क्योंकि इसी से जीवन को सही दृष्टि प्राप्त होती है।
स्वास्थ्य हेतु सम्यक आचरण आवश्यक
. परन्तु आजकल अधिकांश व्यक्ति अपना सारा चिन्तन और प्रयास .. शारीरिक स्वास्थ्य तक ही सीमित रखते हैं। जब तक शरीर में दर्द अथवा बेचैनी,
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