Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ है, रोगी अपने आपको रोगमुक्त समझने लगता है। रोगी रोग का कारण स्वयं को नहीं मानता और न अधिकांश चिकित्सक... उपचार में रोगी की सजगता एवं मानसिक भागीदारी को आवश्यक समझते हैं। प्रायः डाक्टरों के पास. उमड़ने वाली भीड़ और विज्ञापन ही उसको उपचार की विधि चुनने हेतु प्रेरित करते हैं। रोंगी का डाक्टर एवं दवा के प्रति आवश्यकता से आधिक विश्वास होने तथा स्वयं के अज्ञान, अविवेक, असजगता के कारण तथा तर्क पूर्ण . सम्यक् चिन्तन के अभाव में वह निदान की सत्यता और किए जा रहे उपचार की उपयोगिता एवं प्रभाव की यथार्थता का चिकित्सक से स्पष्टीकरण माँगना आवश्यक . नहीं समझता और चिकित्सक भी कभी-कभी रोगी के प्रश्नों की उपेक्षा कर देते हैं। दुष्प्रभावों की उपेक्षावृत्ति के कारण कभी-कभी रोगी डाक्टरों की प्रयोगशाला बन जाए तो भी आश्चर्य नहीं। ऐसे असजग रोगी विभिन्न प्रचलित परावलम्बी दवाओं पर आध परित चिकित्सा पद्धतियों में उपचार से अपेक्षित परिणाम न मिलने के कारण हतोत्साहित हो, जब प्रभावशाली स्वावलम्बी अहिंसात्मक चिकित्सा के अनुभवी चिकित्सकों के पास पहुँचते हैं, तब तक उनका मनोबल प्रायः टूट चुका होता है। वे रोग से निराश और परेशान होते हैं, तब ही उनका विज्ञापनों पर आधारित चिकित्सवा पद्धतियों के प्रति भ्रम दूर होता है। अपने आपको और अधिक डाक्टरों की प्रयोगशाला न बना सकें, इस हेतु व अधिक सजग जाए जाते हैं। उपचार से पूर्व वे निम्न स्पष्टीकरण अवश्य पूछते हैं। 1. क्या उनके रोग का उपचार सम्भव है? 2. आपने ऐसे कितने रोगियों का सफल उपचार किया? 3. मैं कब तक रोगमुक्त हो जाऊँगा? 4. उपचार का कोई दुष्प्रभाव तो नहीं पड़ेगा? यदि उपर्युक्त स्पष्टीकरण रोग का प्रारम्भिक उपचार करते समय ही चिकित्सक से पूछ ले और निदान व उपचार के तौर-तरीके पर चिन्तन-मनन करने के पश्चात ही चिकित्सा प्रारम्भ कराएं, तो चाहे जिस चिकित्सा से उपचार कराए, निश्चिम रूप से रोगी को लाभ पहुँचेगा और रोगी डाक्टरों की प्रयोगशाला - बनने से अपने आपको बचा लेगा। सवारस 55

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94