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मंत्रालयों की नीतियों में स्वास्थ्य गौण है। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रदूषण, पर्यावरण, दुर्व्यसनों के सेवन एवं अन्य दुष्प्रवृत्तियों पर प्रभावशाली कानूनी प्रतिबन्ध T नहीं हैं। अपितु ये सरकारी संरक्षण में पनप रहे हैं। आज रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं। मिलावट, अनैतिकता, दुराचरण आम बात हो गई है, सारा वातावरण पाशविक .
वृत्तियों से दूषित हो रहा है। . . वैकल्पिक चिकित्सा के प्रति सरकारी सोच
___ • जब तक सरकारी सोच में बदलाव नहीं आएगा, रोग के मूल कारणों को जानने व समझने की उपेक्षा होगी, दुष्प्रभावों की अनदेखी होगी, चिन्तन में तथ्यपरकं. अनेकान्त दृष्टिकोण नहीं आएगा, तब तक सरकार से अच्छे स्वास्थ्य हेतु सहयोग
की अपेक्षा करना व्यर्थ होगा। इसी कारण जितने ज्यादा चिकित्सक बढ़ रहे हैं, 'अस्पताल खुल रहे हैं उससे तेज रफ्तार में नए-नए रोग व रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
. . कारण चाहे जो हो तथाकथित वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ सरकारी उपेक्षा की शिकार हैं। अभी तक सरकार द्वारा न तो उन पर शोध को अपेक्षित प्रोत्साहन दिया जा रहा है व न ही उनके प्रशिक्षण एवं उपचार व्यवस्था की ओर सरकार का विशेष ध्यान ही जा रहा है। भले ही वे चिकित्सा के मापदण्डों में सरकारी मान्यता प्राप्त विकसित और वैज्ञानिक समझी जाने वाली आधुनिक चिकित्सा पद्धति से काफी आगे ही क्यों न हों? विभिन्न देशों में उन पर व्यापक शोध, विकास और प्रचलन बढ़ने से विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्थाओं का भी ध्यान आकर्षित हुआ .. ओर उन्हें मान्यता मिली परन्तु हमारे सरकारी तंत्र की सोच अपने पूर्वाग्रहों एवं दवा निर्माताओं के दबाव के कारण उस दिशा में अभी तक तो पूर्ण उपेक्षित है, भविष्य में क्या होता है, कहा नहीं जा सकता। उसका परिणाम यह हुआ मानो परीक्षा में 25 अंक प्राप्त करने वालों को सर्वश्रेष्ठ तथा 60 से 70 अंक प्राप्त करने वालों को... अयोग्य घोषित किया जा रहा है। मैट्रिक पास व्यक्ति एम.ए. वालों को पढ़ाने की : भूमिका निभा रहा है। क्या स्वास्थ्य मंत्रालय के सम्बन्धित नीति निर्माताओं ने वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञों से परामर्श कर समझने का प्रयास किया है? प्रकृति का यह मौलिक सिद्धान्त है कि रोग जिस स्थान, वातावरण एवं। परिस्थितियों में उत्पन्न होता है, उसका उपचार उसी वातावरण, परिस्थितियों में उपलब्ध धरती के अवयवों में समाहित होता है। अतः पौराणिक चिकित्सा पद्धतियों : के सिद्धान्त और उपचार का तरीका भारत की जलवायु एवं संस्कृति व वातावरण के ज्यादा अनुकूल होना चाहिए, जिस पर पूर्वाग्रह छोड़ अनेकान्त दृष्टि से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुनः शोध एवं व्यापक चिन्तन आवश्यक है। .
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