Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 36
________________ करते हैं अथवा जिन्हें नहीं देखना चाहिए। हमारी प्राथमिकताएं, आवश्यकताओं के अनुरूप हो न कि इच्छाओं के अनुरूप। . स्वास्थ्य का अस्तित्व जब तक शरीर में आत्मा होती है, तभी तक होता. है। आत्मा ही अपनी चैतन्य ऊर्जा द्वारा शरीर, मन और भावों का सृजन करती है। अतः स्वस्थता का मतलब है आत्मा की शुद्धता, पवित्रता । अतः उपचार आत्मा को. अपवित्र बनाने वाला कदापि नहीं होना चाहिए। यही हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आत्मा की उपेक्षा अथवा उसको विकारी बनाना हमारे गलत सोच का प्रतीक होती है। आभूषण की शोभा शरीर पर कपड़े पहनने के बाद धारण करने से होती है। जिस प्रकार कपड़ों बिना आभूषण पहनने वाला पागल ही होता है, ठीक उसी प्रकार आत्मा को विकारी बना शारीरिक स्वस्थता को प्राथमिकता कैसे बुद्धिमता हो सकती है? . _ चिकित्सा हेतु अमानवीय आचरण अनुचित अमानवीय कार्यों से आत्मा दूषित होती है। विशेषकर हिंसक आचरण से। स्वार्थवश अपनी श्रेष्ठता, उच्चता, सबलता का लाभ उठा, अन्य प्राणियों को साथ हिंसा, क्रूरता, निर्दयता का आचरण करने का हमें अधिकार नहीं है। अतः आत्मिक पवित्रता के लिए ऐसे कृत्यों को प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष करने, करवाने और अनुमोदन करने से अपने मन, वचन और काया को अलग रखना सर्वाधिक आवश्यक है। प्रकृति का अटल नियम है कि “दुःख देने से दुःख मिलता है। और “सुख देने से सुख मिलता है। अतः प्राणिमात्र के प्रति हमें दया, करूणा, संवेदना, मैत्री का भाव विकसित करना चाहिए। अपनी शांति, सुख और स्वास्थ्य के लिये दूसरे प्राणियों की हिंसा, क्रूरता, कष्ट, दुःख, तनाव आदि पैदा करने वाले कारणों में प्रत्यक्ष परोक्ष सहयोगी बन हम लाख प्रयास करने के बावजूद अपने आपको स्थायी रूप से स्वस्थ नहीं रख सकते। जब तक रोग अथवा दुःख के कारणों को दूर नहीं किया जाएगा तथा अपने द्वारा . . किए गए प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष, जाने अनजाने, वर्तमान अथवा भूत के अपराधों का परिणाम नहीं भोगेगा, तब तक दुःख से मुक्ति नहीं मिल सकती। रोग दुःख की अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। शारीरिक पीड़ा देने वालों को शारीरिक कष्ट अथवा रोग के रूप में ही अपने कर्मों का भुगतान करना पड़ता हैं। दुर्भाग्य तो इस बात का है कि प्रायः अधिकांश चिकित्सा पद्धतियां उपचार में आत्मा के विकारों की न केवल उपेक्षा करती है, परन्तु कभी कभी तो शरीर को स्वस्थ बनाने हेतु उन विकारों को बढ़ाते हए भी संकोच नहीं करतीं। अतः सम्पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए अहिंसक आचरण अनिवार्य है.। उपचार हेतु प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हिंसा को प्रोत्साहन कदापि उचित नहीं हो सकता? : ___-35 35 .

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