Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 37
________________ मामा पापकाहा . शरीर के रचनाकार द्वार निर्मित शरीर की स्वःस्वास्थीकरण (Self Healing) स्वःचालित (Self Operating) स्वःव्यवस्थित (Self Adjusting) स्वःसुधारक (Self Repairing) रक्षा प्रणाली शरीर के किसी भी भाग में एकत्रित हुए विषैले, रोग उत्पन्न करने वाले, विजातीय तत्वों का प्रतिरोध करती है। हमारे अनुचित खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार, अथवा अप्राकृतिक जीवनशैली से यदि उस शक्ति को अधिक कार्य करना पड़े तो उसकी कार्य क्षमता जल्दी क्षीण हो जाती है और शरीर में रोगग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है। शरीर की इस सुरक्षा व्यवस्था (Defence Power) को क्षीण होने से रोकना ही रोगों को रोकना है। संयमित, नियमित, परिमित, स्व अनुशासित एवं स्वनियंत्रित, स्वावलम्बी और सात्विक जीवन शैली ही स्वस्थ जीवन की प्राकृतिक विधि होती है। वंशानुगत रोगों में माता-पिता की भूमिका कोई भी रोग बाजार में नहीं मिलता। पूर्वार्जित कर्मों, आकस्मिक दुर्घटनाओं · अथवा जन्मजात और वंशानुगत रोगों को छोड़ प्रायः अन्य सभी रोगों के लिए . बाल्यकाल के पश्चात् रोगी स्वयं ही जिम्मेदार होता है। बाल्यकाल और गर्भाव्यवस्था में तो जीवन माता के आश्रित होता हैं। हमारे शरीर के सभी अंगों, उपांगो, अन्तःश्रीवी ग्रन्थियों, इन्द्रियों आदि का 99% निर्माण तो बीज रूप में गर्भावस्था में ही हो जाता है। जन्म के पश्चात तो उसमें मात्र विकास अथवा फैलाव ही होता है। अच्छे फल की प्राप्ति के लिए बीज का अच्छा होना अनिवार्य है। अतः बच्चे के स्वास्थ्य हेतु विशेष रूप से माता ही जिम्मेदार होती हैं। वंशानुगत और जन्मजात रोगों में माता-पिता द्वारा गर्भकाल में रखी गई असावधानियाँ, असंयम, अविवेक एवं उपेक्षावृत्ति ही मूल कारण होते हैं। खेती करने वाला साधारण किसान भी अच्छी . फ़सल प्राप्त करने के लिए बीज बोने से लेकर फसल प्राप्त होने तक कितनी सजगता, सावधानी और देखरेख करता है, पुरूषार्थ करता है, तो ही उसे अपने परिश्रम का उचित फल मिलता है। तब मनुष्य जैसे व्यक्तित्व के निर्माण के प्रति . माता-पिता असजग, बेखबर लापरवाह रहें, अविवेकपूर्ण आचरण करें तो वे अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार नहीं कहे जा सकते? उसका दुष्परिणाम होता है अशक्त, कमजोर, दुर्बल, रोगग्रस्त, विकलांग सन्तान । माँ के पेट में बच्चा अधिकांशतः सोया · रहता है परन्तु माँ के आवेग अथवा अन्य कारणों से यदि वह जागृत हो जाता है तो उस समय होने वाला बच्चे का विकास अपूर्ण होता है। क्रोध की अवस्था में माता द्वारा कराया गया दुग्धपान विष का कार्य करता है। अप्राकृतिक जीवन शैली रोग का मूल प्रकृति के साथ असहयोग की सजा रोग है। अतः निरोग रहने के लिए - आवश्यक है कि यथासम्भव हम प्राकृतिक नियमों का पालन करें। शरीर को स्वस्थ . -36

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