Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 41
________________ - के समाप्त हो जाने के पश्चात भी जब तक एलोपैथिक डाक्टर रोग की अनुपस्थिति की पुष्टि नहीं करते, तब तक उनमें उपचार की विश्वसनीयता पर सन्देह बना रहता है। श्रद्धा और समर्पण के अभाव में उपचार की प्रभावशीलता तो वैसे ही कम हो जाती है। ऐसे रोगी अपनी मानसिकता के कारण वैकल्पिक चिकित्सा का पूर्ण लाभ नहीं ले पाते । वैकल्पिक चिकित्सा के लम्बे-चौड़े दावे करने वाले बहुत से चिकित्सक, जिन्हें अपनी चिकित्सा के मौलिक सिद्धान्तों की जानकारी नहीं होती अथवा पूर्ण अनुभव नहीं होता, वे चिकित्सक आत्मविश्वास एवं वैकल्पिक चिकित्साओं की प्रभावशीलता पर पूर्ण विश्वास न होने से स्वयं के रोगग्रस्त होने की स्थिति में अपनी चिकित्सा पद्धति से निदान अथवा उपचार करने के बजाय तात्कालिक राहत हेतु एलोपैथिक उपचार लेना पसन्द करते हैं, तो सारे दावे जनसाधारण को खोखले लगने लगते हैं। परिणामस्वरूप जनसाधारण वैकल्पिक चिकित्सा के प्रति जल्दी आकर्षित नहीं होता। . पौराणिक जीवन शैली का विस्मरण भौतिक विज्ञान से जहाँ बुद्धि का विकास हो रहा है, वहीं शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और आत्मिक स्तर पर मानव दुर्बल और परावलम्बी होता जा . रहा है। आत्मिक आनन्द से अनभिज्ञ आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान के विस्तार से जनसा गरण का रोग के कारणों के प्रति मौलिक चिन्तन स्वाध्याय की प्रवृत्ति घटती जा रही है। हमारे ऋषि-मनीषियों ने अपने अनुभव के आधार पर जीवन शैली को प्रकृति के अनुरूप जिस सहज रूप से ढाला, जिससे प्रत्येक व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रह सके, आज यह चिन्तन गौण होता जा रहा है। जैसे मौसम के बदलाव से जुड़े हमारे त्यौहार, रीति-रिवाज, पर्व, खान-पान, रहन सहन, वस्त्र, आभूषण, आराधना पद्धति, व्रत, उपवास, लाके संगीत, सुख-दुःख के प्रसंगों पर सामूहिक भागीदारी आदि के पीछे स्वास्थ्य विज्ञान का पूर्ण आधार था, परन्तु आज हम उसके महत्त्व को भूलकर, पश्चिमी देशों के अन्धानुकरण और वैज्ञानिकता की आड़ में जो जीवन शैली निःसंकोच अपना रहे हैं,,उससे स्वास्थ्य की समस्याएँ बढ़ती जा रही है। भौतिकतावादी मानव का दृष्टिकोण भौतिक विचारधारा वालों का दृष्टिकोण प्रायः स्वार्थी संकुचित होता है। तात्कालिक लाभ के लिए होता है। उनकी प्राथमिकताएँ मन के अनुकूल इन्द्रियों के पोषण की अधिक होती है। खाओ, पीयो और मौज करो। वह आत्मा का अस्तित्व . मृत्यु तक ही मानता है। शरीर और आत्मा को एक ही मानता है। जन्म से पूर्व और मृत्यु के पश्चात् आत्मा के अस्तित्व को जानने, समझने, स्वीकारने हेतु प्रयास नहीं करता। उनका मुख्य ध्येय शारीरिक पोषण एवं स्वास्थ्य तक ही सीमित होता है तथा - उसक लिए कभी कभी मन, भाव और आत्मा को विकृत करते तानिक भी संकोच नहीं करता। . . . 40

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