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किया जा सके। आवश्यकता पड़ने पर जिसका पुनरावर्तन किया जा सके। जैसे . विज्ञान द्वारा विकसित सभी सुविधाओं के साधन, उपकरण, यंत्र आदि का उपयोग
कोई भी कर सकता है। उपर्युक्त मापदण्डों को जो पूर्ण न करते हो, उनको आज का मानव वैज्ञानिक तथ्य के रूप में स्वीकार करते संकोच करता है। भले ही वह अनुभूतियों द्वारा प्रमाणित ही क्यों न हो? उपर्युक्त मापदण्डों के आधार पर विज्ञान के नाम पर आज तक जो कुछ उपलब्धियाँ विकसित हुई हैं अथवा हो रही है, उन सभी का सम्बन्ध प्रायः भौतिकता से ही होता है। अनुभूति, चेतना की ऊर्जा का माप
और अप्रत्यक्ष पड़ने वाले प्रभाव उसमें उपेक्षित होते हैं। सभी अदृश्य, अरूपी पदार्थ . उसकी पकड़ में नहीं आते।
अध्यात्म से शून्य स्वास्थ्य विज्ञान अपूर्ण
जिस चिकित्सा में शारीरिक सवास्थ्य ही प्रमुख हो, मन भावों अथवा आत्मा के विकार जो अधिक खतरनाक, हानिकारक होते हैं, गौण अथवा उपेक्षित होते हों या बढ़ते हों, ऐसी चिकित्सा.पद्धतियों को ही वैज्ञानिक समझने वाले, विज्ञानक की बातें भले ही करते हों, विज्ञान के मूल सिद्धान्तों से अपरिचित लगते हैं। विज्ञान शब्द का अवमूल्यन करते हैं। सनातन सत्य पर आधारित प्राकृतिक सिद्धान्तों को नकारते हैं। ऐसी सोच गाड़ी में पेट्रोल डाल चालक को भूखा रखने के तुल्य है। ऐसी गाड़ी . . में यात्रा करने वाला यात्री लम्बी दूरी की यात्र कैसे कर सकेगा-यह चिन्तन का प्रश्न है? उसी प्रकार चेतन चालक की उपेक्षा कर जड़ शरीर रूपी वाहन का ही ख्याल .. रखने वालों को ज्ञानी, समझदार, बुद्धिमान कैसे कहा जाए?
आध्यात्मिक स्वास्थ्य विज्ञान का सिद्धान्त .
... स्वास्थ्य एवं जीवनयापन की दृष्टि से आत्म-साधकों का जीवन प्राणी मात्र ... . . के प्रति करूणा, दया और अनुकम्पा, “सर्व जीव हिताय, सर्व जीव सुखाय' की
लोकोक्ति को सार्थक करने का होता है। उनके शोध और साधना का मूल उद्धेश्य. आत्मा को निर्मल, शुद्ध, पवित्र बनाना होता है। अर्थात् आत्म-पोषण का होता है। भले ही उन्हें कभी-कभी उसके लिए शरीर को कष्ट ही क्यों न देना पड़े? उनके
जीवन भी क्रोध, मान, माया, लोभरूपी कषायों की मन्दता होने से वे अनुकूल और . प्रतिकूल परिस्थितियों में परेशान नहीं होते। उनमें प्रायः मानसिक आवेग नहीं आते
जो हमारी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को प्रभावित कर रोग का मुख्य कारण होते हैं।
आचरण में अहिंसा, सत्य, नैतिकता, संयम की प्राथमिकता होती है। प्रायः ऐसे व्यक्ति - सहनशील, सहिष्णु, निर्भीक और धैर्यवान होते हैं। वाणी में विवेक और मधुरता का
सदैव ख्याल रखते हैं उनका उद्देश्य होता है जीवन में चिरस्थायी आनन्द, शक्ति एवं स्वाधीनता की प्राप्ति। वे स्वयं के द्वारा स्वयं का आत्मावलोकरन, निरीक्षण, परीक्षण करते हैं। वे स्वयं के द्वारा स्वयं से अनुशासित होते हैं। उनका जीवन शान्त,