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में रखी गई उपेक्षावृत्ति, अनावश्यक दवाओं का सेवन तथा शारीरिक परीक्षण, इलैक्ट्रोनिक किरणों (एक्स रे, टी,वी, सोनोग्राफी, कम्प्यूटर, केट स्कैनिंग, मोबाइल फोनों एवं अन्य प्रकार की आणविक तरंगों) का दुष्प्रभाव, प्राण ऊर्जा का दुरूपयोग तथा आवश्यकता के अनुरूप आराम, विश्राम, निद्रा का अभाव, शरीर में रोग. ... प्रतिकारात्मक और रोग निरोधक क्षमता का क्षीण होना, दवाओं एवं गलत अथवा अ रे उपचार का दुष्प्रभाव, वृद्धावस्था, इन्द्रियों और मन का असंयम जो शरीर में विकार पैदा करे, आलस्य, अविवेक, अशुभ चिन्तन, आवेग, तनाव, अज्ञान, जीवन मूल्यों
चयन और प्राप्ति हेतु असजगता, ध्यान और स्वाध्याय की उपेक्षा, राग, द्वेष और हिंसा .. को प्रोत्साहित करने वाली कषाय मूलक प्रवृत्तियाँ आदि की बहुलता रोगो के मुख्य
कारण हैं। - जितने ज्यादा उपर्युक्त कारण विद्यमान होंगे, उतने शरीर में विजातीय तत्त्व अधिक बनेंगे तथा पूर्ण रूप से पेशाब; मल, पसीना, नाक, बलगम द्वारा बाहर । नहीं निकल पाएँगे और शरीर में एकत्रित होने लगेंगे। जिस भाग में विजातीय तत्त्व... एकत्रित होंगे, उस अंग की कार्यप्रणाली खराब हो जाती है और उससे सम्बन्धित
रोग हो जाते हैं। रोगों के नाम भले, ही भिन्न-भिन्न हों, परन्तु कारण शरीर में . . अनावश्यक, अनुपयोगी तत्त्व का जमाव ही होता है। जितने ज्यादा शरीर में
अनावश्यक, अनुपयोगी तत्त्व होंगे उतना ही व्यक्ति अशान्त, परेशान, तनावग्रस्त, दुःखी एवं रोगग्रस्त होगा और जितना-जितना इन कारणों से बचता जाएगा उतनां उतना व्यक्ति स्वस्थ एवं निरोगी होगा।
स्वास्थ्य एवं रोग जीवन की दो अवस्थाएँ हैं। जीवन में प्रतिक्षण निर्माण और क्षय का क्रम चलता है। जब तक दोनों में सन्तुलन रहता है, तब तक हम स्वस्थ रहते हैं परन्तु जब कोशिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया उनके क्षय होने से गीमी हो जाती है तो शरीर में कमजोरी एवं रोग उत्पन्न होने की स्थिति बनती है।
पहले रोग की प्रतिकारात्मक क्षमता घटने लगती है और बाद में रोग के लक्षण प्रकट . · होने लगते हैं। ,
. इन कारणों के परिणामस्वरूप शरीर में चेतना का असन्तुलन हो जाता है। कहीं सक्रियता आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो कुछ भाग चेतना की असक्रियता के कारण आंशिक अथवा पूर्णरूपेण निष्क्रिय होकर अपना कार्य बराबर नहीं करते तथा व्यक्ति रोगी हो जाता है। यदि किसी भी विधि द्वारा इस असंतुलित चेतना को पुनः संतुलित कर दिया जाए तो सारे शरीर में चेतना का प्रवाह सन्तुलित होने लगता है और व्यक्ति रोगमुक्त होने लगता है।
.: आज चन्द मानव भौतिक सुखों की तलाश में दुर्व्यसनों को जानते हुए भी निःसंकोच सेवन करते हैं। पानी की भाँति शराब अथवा अपेय का सेवन करते हैं। बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, अफीम, हुक्का, गुटखा, हेरोइन, स्मैक आदि हानिकारण
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