Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ स्वतः स्वस्थ हो जाते हैं। शरीर में रोग के अनुकूल दवा बनाने की क्षमता होती है और यदि उन क्षमताओं को बिना किसी बाह्यय दवा के विकसित कर दिया जाए तो उपचार अधिक प्रभावशाली, स्थायी एवं भविष्य में पड़ने वाले दुष्प्रभावों से रहित होता है। दवा और चिकित्सक तो मात्र मार्गदर्शक अथवा सहायक की भूमिका निभा सकते हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिए स्वयं की सजगता, भागीदारी, जीवन चर्या एवं गतिविधियों पर पूर्ण संयम, अनुशासन और नियंत्रण आवश्यक है। अच्छे से अच्छा अनुभवी चिकित्सक और दवा उसके बिना रोगी को ठीक नहीं रख सकते। पीड़ा में राहत मिलना मात्र रोग का सम्पूर्ण उपचार नहीं होता। स्वास्थ के प्रति अन्तर सजगता व्यक्ति की पहली चिकित्सा है। ... क्या मानव कभी चिन्तन करता है कि मनुष्य के अलावा अन्य चेतनाशील प्राणी अपने आपको कैसे स्वस्थ रखते हैं? क्या स्वस्थ रहने का ठेका दंवा और • डाक्टरों के सम्पर्क में रहने वालों ने ही ले रखा है? चिकित्सा विज्ञान में इतने विकास के बावजूद रोग और रोगियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि क्यों हो रही है ? वास्तव में इस बात पर विश्वास करना होगा कि शरीर ही अपने आपको स्वस्थ रख सकता है। अच्छी से अच्छी दवा और चिकित्सक तो शरीर को अपना कार्य स्वयं करने में सहयोग मात्र देते हैं। जिसका शरीर सहयोग करेगा, वही स्वस्थ होगा। यही सोच, स्वास्थ्य प्राप्त करने का मूलाधार है। पूर्ण शरीर को एक इकाई मानना आवश्यक आज हमने उपचार हेतु शरीर को कई टुकड़ों में बांट दिया है। जैसे एक अंग का दूसरे किसी अंग से सम्बन्ध ही न हो। आँख का डाक्टर अलग, कान, नाक, गला, दांत, हृदय, फेफड़ा, गुर्दा, मस्तिष्क आदि सभी के विशेषज्ञ डाक्टर अलग-अलग होता हैं। उपचार करते समय जब तक पूर्ण शरीर मन व आत्मा को एक इकाई के रूप में स्वीकार न किया जाएगा, तब तक स्थायी प्रभावशाली उपचार एक कल्पना मात्र होगी। आँखों का डाक्टर भौतिक आँखों एवं कान का डाक्टर भौतिक कान तक सीमित रह उस पर गहनतम शोध में व्यस्त हैं। उसकी चेतना के मूल स्रोत पर उसका नियंत्रण नहीं है। चींटी और कुत्ते की घ्राणेन्द्रिय ( सूंघने की शक्ति) इतनी तीक्ष्ण क्यों होती है? गिद्ध की दृष्टि जैसी प्रत्येक मानव की दृष्टि क्यों नहीं होतीं? कोयल जैसी मधुरता प्रत्येक व्यक्ति की वाणी में क्यों नहीं विकसित होती ? जब आँख बैठे-बैठे अप्रत्यक्ष दृश्यों का स्मरण होते ही पूर्व में देखे गए दृश्यों को बन्द आँखों देख सकती है, तो क्या उन दृश्यों से पड़ने वाले अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव आँखों को प्रभावित नहीं करेंगे? आँख, कान अथवा शरीर का सूक्ष्म से सूक्ष्मं भाग अथवा इन्द्रियाँ मात्र भौतिक उपकरण या पदार्थ ही नहीं हैं, परन्तु उसके साथ जीवन्त चेतना, संवेदनाएँ, और मन की स्मृति, कल्पानाएँ, अनुभूति आदि भी जुड़े हैं, उसके ज्ञान के बिना आँख और कान जैसे शरीर के किसी भी भाग की सूक्ष्मतम जानकारी अधूरी ही होती है। 25

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94