Book Title: Swadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Swaraj Prakashan Samuh

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Page 27
________________ ... अध्याय.-.3. शारीरिक रोगों के कारण . ... . रोग क्या है ? उपचार से पूर्व यह जानना और समझना आवश्यक है कि रोग क्या है? रोग क्यों, कब और कैसे होता है? उसके प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष कारण कया हैं? शरीर की रोग प्रतिकारात्मक शक्ति कैसे बढ़ती है? और क्यों कम होती है? उसके सहायक और विरोधी तत्त्व क्या हैं? क्या शारीरिक रोगों का मन, विचार, भाव, वाणी . अथवा आत्मा से प्रत्यक्ष-परोक्ष सम्बन्ध है? क्या उपचार करते समय उनसे संबंधि त कारणों को प्राथमिकता दी जाती है? क्या उन कारणों की उपेक्षा तो नहीं होती . अथवा उपचार मन और आत्मा के विकारों को बढ़ाने वाला तो नहीं है? अर्थात् उपचार हेतु उपयोग में लिए जाने वाले साधन, सामग्री कितने पवित्र हैं? रोगी का . आचरण और जीवन-चर्या प्रकृति के सनातन सिद्धान्तों और नियमों के प्रतिकूल तो नहीं है? . रोग का मतलब शरीर में विकारों, दोषों, विजातीय अथवा अनुपयोगी तत्त्वों का जमा होकर, शरीर के विभिन्न तन्त्रों के स्वचालित, स्वनियंत्रित कार्यों में अवरोध - अथवा असन्तुलन उत्पन्न करना है। वास्तव में प्राकृतिक सनातन नियमों का जाने-अनजाने वर्तमान अथवा भूतकाल में उल्लंघन करना अर्थात् असंयमित, अनियंत्रित, अविवेकपूर्ण स्वछन्द आचारण के द्वारा जो शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक क्षमताओं का अपव्यय, दुरूपयोग करने से, जो विकार उत्पन्न हो, . असंतुलन की जो स्थिति बनती है, वही रोग है। ऐसी परिस्थिति में शरीर एवं मन की सभी क्रियाएँ, अंग, उपांग, इन्द्रियां, तंत्र, अवयव आदि अपना अपना कार्य स्वतंत्रता पूर्वक सामान्य रूप से नहीं कर पाते। फलतः शरीर, मन और आत्मा के अवांछित, विजातीय, अनुपयोगी विकारों का विसर्जन बराबर नहीं होता। उनमें अवरोध उत्पन्न होने से पीड़ा, दर्द, वेदना, जलन, सूजन, विघटन, चेतना की शून्यता, तनाव, बेचैनी, भय, चिन्ता, अधीरता, असजगता, गलत दृष्टिकोण व. चिन्तन, जीवन के प्रति निराशा आदि के जो लक्षण प्रकट होते हैं, वही मिलकर एक रोग कहलाते हैं। . . 26 ..

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