Book Title: Stotra Granth Samucchaya
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 235
________________ २२३ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः ॥ श्रीसम्भवनाथस्तोत्रम् ॥ सिरिसूरिमंतसरणं, किच्चा गुरुणेमिसूरिपयसरणं । सिरिसंभवपहुथुत्तं, विरएमि महप्पहावड्ढे ॥१॥ (आर्यावृत्तम्) वरगेविज्जयसग्गे, अणुहूयामरविसिट्ठसुहपयरं । ववगयचवणयचिण्हं, वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥२॥ फग्गुणसियट्ठीए, वरसेणाकुक्खिसुत्तिमोत्तियहं । भुवणविहियवरसंति, वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥३॥ जियरिकुलंबरचंद, मग्गसिरे सुक्कचोद्दसीदियहे । जायं सावत्थीए, वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥४॥ चउसयधणुमियदेहं, मग्गसिरे सुक्कपुण्णिमादिवसे । दससयसुहपरिवारं, छट्ठतवग्गहियचारित्तं ॥५॥ छउमत्थत्तं चोद्दस-वरिसाइं जस्स तं सुहविहारं । चउनाणमोणकलियं, वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥६॥ भवतइघाइचउक्कं, कत्तियसियपंचमीइ छटेणं । नासित्ता जो पत्तो, पंचमनाणं सरामो तं ॥७॥ चत्तारि सुया भासा, पण्णत्ता धम्मकोरवा चउहा । इय तत्तगोवएसं, वंदे सिरिसंभवाहीसं ॥८।। चत्तारि अंतकिरिया, पुरिसकसाया तहेव चत्तारि । इय० ॥९॥ झाणालंबणलक्खण-णुप्पेहणभेयभावणा चउहा । इय० ॥१०॥ निरयाउहेउसावग-सुयसण्णा भासिया सुए चउहा । इय० ॥११॥ विगहालियहासाणं, हेऊ चत्तारि पवयणे गइया । इय० ॥१२॥ णिग्गंथवत्थरुक्खा, तहेव वत्थस्स होज्ज चउभंगा । इय० ॥१३॥ भिक्खुनिरूवणकाले, चत्तारि घुणा वणस्सई चउहा । इय० ॥१४|| नरलोयागमणेच्छा, जायइ देवाण कारणचउक्का ॥ इय० ॥१५।। मिच्छत्तठिई चउहा, देवाण ठिई चउव्विहा पडिमा ॥ इय० ॥१६।। चत्तारि णायबंधे, धम्मकहोवक्कमाइचउभेया । इय० ॥१७|| चउकारणनिष्फण्णं, कम्मज्जणमेव चउविहो कोहो ॥ इय० ॥१८॥ चत्तारि अस्थिकाया, अजीवकाया अरूविणो विइया । इय० ॥१९।। फलसच्चमोसदेवा-पणिहाणं दुव्विहं तहा चउहा ॥ इय० ॥२०॥ चत्तारि लोगवाला, भेया चत्तारि दिट्ठिवायस्स ॥ इय० ॥२१॥ पायच्छित्तं कालो, पोग्गलपरिणाम दुग्गई चउहा ॥ इय० ॥२२॥ चाउज्जामो धम्मो, मज्झरहाणं विदेहखित्तम्मि ॥ इय० ॥२३॥ संजम सच्चासासं-जणगिरिदाणं तहेव चउभेयं ॥ इय० ॥२४॥

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