Book Title: Stotra Granth Samucchaya
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
२६८
श्रीविजयपद्मसूरिविरचितः
इयरम्मि वि प्पइट्ठा, सद्दपवित्ती न वत्थुओ सत्था । आरोवणववहारा, जणप्पसिद्धी मुणेयव्वा ॥११५।। सूरीहिं पुव्वेहिं, जह कहिया तह सुहंजणसलाया । सिरिणेमिसूरिगुरुणा, विहिया विहिणा कयंबम्मि ॥११६।। सुहसुक्कतेरसीए, माहे जाओ महुस्सवारंभो । बावीसवासरंते, फग्गुणसियपंचमीनिट्ठो ॥११७।। मंडवठवणामंगल-दीवसमोसरणपमुहसंठवणा । कुंभट्ठावणकिरिया, जववारारोवणाइ तहा ॥११८।। नंदावट्टसमच्चा, जिणपासायाहिसेयपमुहाई। किच्चाई दिसिवालय-मंगलहिट्ठायगगहच्चा ॥११९।। विज्झादेवीपूया, संतिकलसपमुहसंविहाणाई । सासणदेवि दव्वा-हणबलिमंतोवविण्णासो ॥१२०।। सिरिसिद्धचक्कपूया-पमुहविहाणाइ तित्थहिययाई । कल्लाणगाइहेउय-रहजत्ता उचियसामग्गी ॥१२१।। वीसइठायमंडल-धजदंडकलसहिसेयपूयाइ । जाया महुस्सवेणं, सुरीपइट्ठा पसंति दया ॥१२२।। बिहनंदावट्टच्चा, पढमदुकल्लाणगुस्सवारंभो । तह वरदिसिकुमरीणं, महुस्सवो रंगओ जाओ ॥१२३।। जम्माहिसेयकिरिया, इंदाइमहुस्सवाइया रम्मा । अडदसहिसेयणाम, ट्ठवणा वरलेहसालाई ॥१२४।। अहिसेयपइट्ठाइय, महुस्सवो गणहराइयगुरूणं । बिंबसिणत्तविहाणं, कुंभट्ठवणाइ सुकयंबे ॥१२५।। वरघोडो दिक्खाए, गहदिसिवालच्चणाइ सुकयंबे । संतिसिणत्ताइजुया, देउलियहिसेयकिरियाओ ॥१२६।। दिक्खासेसविहाणं, केवलकल्लाणगुस्सवाइविही । सुहलग्गंजणकिरिया, सूरिकया महभिसेयविही ॥१२७।। वरकेवलकल्लाणे, सेसविहाणाइ संघवच्छल्लं । पुज्जजिणासणठवणं, दंडाइयरोवणं विहिणा ॥१२८।। फरगुणसियतइयाए, रायणयरवासिकरमचंदस्स । पुत्तीए पुंजीए, भइणीए तेसलेयस्स ॥१२९।। पासाओ निम्मविओ, मज्झगओ मूलनायगरिहस्स । सिरिवीरमहाबिंबं, ठवणा तत्थेव तीइ कया ॥१३०।। साहम्मीवच्छल्लं, संतिसिणत्तं तहा सिरिकयंबे । रहजत्तावरघोडो, विट्ठीकिरिया चउत्थीए ॥१३१।।

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380