Book Title: Stotra Granth Samucchaya
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 282
________________ २७० उत्तमपंचमदियहे, रहजत्ताई विसेसवित्थारा । वीसइठाणयमंडल- पूयाइ दिने तहा छ ॥ १४९ ॥ बिहनंदावट्टच्चा, सत्तमदियहे सुहाइकल्लाणं । साहम्मीवच्छल्ले, विहियं माणेकलालेणं ॥ १५०॥ श्रीविजयपद्मसूरिविरचितः जम्मसिणत्ताइविही, महुस्सवेणं कयट्टमे दिय । साहम्मीवच्छल्लं, पोपटलालेण परिविहियं ॥ १५१ ॥ वरदिक्खाकल्लाणं, नवमे नामाइठावणं विहिणा । कल्लाणगं चउत्थं, दसमे जायं पवित्थारा ॥ १५२ ॥ साहम्मीवच्छल्लं, रायणयरवासिचंदुलालेणं । एयम्मि दिणे पगयं, पहावणा सासणस्स कया || १५३ || तयणंतरम्मि दियहे, माहवसियसत्तमीइ हरिसाओ । अंजणविहिपमुहाई, भद्दयकिच्चाइ विहियाई ॥ १५४॥ साहम्मीवच्छल्लं, भावणयरवासिणा धणणं । वित्थारेणं विहियं सावयमाणेकचंदेणं ॥ १५५॥ माहवसिवद्रुमीए, पहुप्पवेसाइ महसिणत्तं च । साहम्मीवच्छल्लं, परिविहियं मूलचंदेण ॥ १५६ ॥ सिरिवीरप्पासाए, महपूयाई य सुक्कनवमीए । साहम्मीवच्छल्लं, नगीनदासेन परिविहियं ॥ १५७॥ पहुविवासणठवण प्यमुहविहाणाइ सत्तमी ( ? दसमी) दियहे । साहम्मीवच्छल्लं, विहियं कप्पूरचंदेणं ॥ १५८ ॥ इक्कारसीसुहृदिणे, वुसिणतं च वारसीदियहे । रहजत्ता विट्ठीओ, पट्टिया तेरसीदिवसे ॥ १५९ ॥ दारुग्घाडणपमुहं, किच्चं किच्चा महुस्सवसमत्ती । बुढिया संखेवा, भणिया बिइयंजणसलाया ॥ १६०॥ वित्थारेण सरूवं विद्यणसहियं तयक्खगंथम्म । वुच्छं जं णिस्संदं, सुलहं होज्जं जणसला ॥ १६९॥ छिपदाणसमत्थं परमत्थनियाणकुसलसाहणयं । विजयह कयंवतित्थं परमन्यमहिमपरिकलियं ॥ १६२॥ कम्माण बंधमोक्खा, होंति सया भावणाणुसारेणं । कम्मुम्मूलणदक्खो, सुहभावो तित्थभूमी || १६३|| संतोसधणा भव्वा, पवयणविण्णायतित्थणिस्संदा । सिद्धि पावेंति सया, कयंबवीरप्पसायाओ ॥ १६४॥ दुरियतिमिररवितुल्लं, भावोयहिरयणिनाहमुहकमलं । वज्जकयंचविहारे, वंदे सिरिसासणाहीसं ॥ १६५ ॥

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