Book Title: Stotra Granth Samucchaya
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
२६९
दारुग्घाडणमेवं, वुड्डसिणत्तुस्सवो समत्तीए । पहुदंसणमिइ कहिया, संखेवा सयलदिणकिरिया ॥१३२।। सिरिनेमिसूरिगुरूणो, विजओदयसूरिणंदणायरिया । सिद्धंतुत्तविहाणं-जणकिरियाकारगा तिण्णि ॥१३३।। तत्तविवेचयसंठा-सब्भेहिं सासणिक्करसिएहिं । गुरुलहुदेउलियाओ, कारित्ता जिणयपडिमाओ ॥१३४।। संठविया भव्वेहि, इयावरेहिं नयरसेट्ठिपमुहेहिं । हिङ्केहि देउलिया-निम्मावणठावणाईसं ॥१३५।। णायागयदविणवओ, विहिओ सिरिणेमिसूरिगुरुवयणा । इय बहुसंखेवाओ, पढिया पढमंजणसलाया ॥१३६।। सिट्ठकयंबविहारे, मज्झगयं सासणेसरं वीरं । चउवीसइतिगजिणए, वीसविहरमाणतित्थयरे ॥१३७|| चउसासयतित्थवई, कयंबगणिपुंडरीयसिरिणाहे । गोयमसोहमसामी, अण्णेऽवि य गणहरे वंदे ॥१३८।। पुव्वायरियाइमहा-पुरिसाणं पणममि भव्वपडिमाओ । ते सव्वे संघगिहे, मंगलमाला कुणंतु सया ॥१३९।। वेयनिहाणंकिंदु(१९९३)-प्पमिए वरिसे य माहवे मासे । जाया जंऽजणकिरिया, वुच्छं तीएऽवि वुत्तंतं ॥१४०।। जत्थहुणा सोहंते, उवस्सया भव्वधम्मसालाओ । तं सिरिकयंबतित्थं, फासंतंगी लहंति समं ॥१४१।। अयले भव्वकयंबे, मरुहरजावालवासिसड्ढवरो । मोतीजीसेट्ठिवरो, तस्स सुया दुण्णि धम्मिट्ठा ॥१४२॥ चंदुत्तरकप्पूरो, ताराचंदो कमेण नामाई । तेहिं गुरूवएसा, नियतणयाईण सेयटुं ॥१४३।। आईसरपासाओ, निम्मविओ तत्थ हरिसयविसालो । तेहिं ठप्पा पडिमा, मरुदेवीपुत्तबहुमहई ॥१४४।। तस्सभिओ भमईए, पट्टणफलवद्धिपमुहसड्डेहिं । देउलिया कारविया, अण्णेहि तहण्णपासाया ॥१४५।। इक्कारसीवरदिणा, चित्तासियपक्खया समारंभो । पवरुस्सवस्स जाओ, सत्तरसदिणावही रम्मो ॥१४६।। कुंभट्ठवणाइ कयं, पढमदिणे सूरिमंतवरविहिणा । साहम्मीवच्छल्लं, विहियं माणेकचंदेणं ॥१४७।। नंदावट्टच्चाई, बिइयदिणे नवगहाइपरिपूया । दिवसे तहा चउत्थे, नवपयपूयाविहाणाई ॥१४८॥

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