Book Title: Stotra Granth Samucchaya
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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२६२
श्रीविजयपद्मसूरिविरचितः
सिरिणाहमुसहपहुणो, पुटिव तत्थागयं गणहरेसं । पासित्ता हिटुहिओ, सुणीअ वक्खाणमुण्णइयं ॥१३।। पुच्छीअ य पज्जंते, भयवं किंरूवमस्स माहप्पं । गणओ वरवाणीए, कहीअ सुण धरणिनाह ! मुया ॥१४॥ कालत्तयसमयदुगे, तइए तह आरगे चउत्थे य । चउवीसइतित्थयरा, भाणुमिया चक्किणो णिवई ॥१५।। नववासुदेवनिवई, एवं पडिवासुदेवबलदेवा । तिगुणिगवीससलागा-मज्झाया सासया भणिया ॥१६।। उस्सप्पिणीओसप्पिणी-बारसआरेहि कालचक्कस्स । संजायस्स पवित्ती, अणुक्कमेणं मुणेयव्वा ॥१७।। एयम्मि कालचक्के, संपइओसप्पणीयकाला जा । उस्सप्पिणी य पुव्वा, ताए पज्जंतिमो अरिहा ॥१८॥ आसी संपइनामा, तित्थयरो मग्गदेसणाकुसलो । पहुणो तस्स कयंबो, गणाहिवो लद्धिसंपण्णो ॥१९।। मुणिकोडीपरिवरिओ, झाणानलदड्वकम्मतणनियरो । इह संपत्तो मुर्ति, ता विइया सिरिकयंबक्खा ॥२०॥ विगयाए चउवीसइ-याए बीओ अभू जिणाहीसो । सिरिणिव्वाणीनामा, तस्स कयंबो गणाहीसो ॥२१।। पहुवयणेणाऽणसणं, किच्चा परिनिव्वुओ महुल्लासो । इह तेण कयंबगिरी, अवि एवं वुत्तमन्नत्थ ॥२२॥ दिव्वोसही विसिट्ठा, महप्पहावा इहेव विविहट्ठा । नाणारसकूवीओ, सुरपायवरयणभूमीओ ॥२३॥ दीवुस्सवे सुवारु-त्तरायणे मंडलं णसेज्जा जो । तस्सज्झक्खा देवा, होज्जा संकंतिगयदियहे ॥२४॥ नण्णत्थगई जुत्ता, भव्वा ! तुम्हाण बुद्धिकलियाणं । विउलणिही एस गिरी, ओसहिरसकुंडसिद्धीणं ॥२५॥ सज्झायझाणहेऊ, पसंति सुहदायगो कयंबगिरी । जम्मि पएसे होज्जा, ते सोरट्ठा नरा धण्णा ॥२६।। दारिद्ददुक्खपसरो, सिग्धं णस्सइ कयंबगिरिवासा । आरुग्गुण्णइनिलओ, सुहभावासेवगो होज्जा ।।२७।। दारिद्दायलवज्जे-ण वि कायंबेण जस्स णो णट्ठो । दारिद्दकट्ठसेलो, सो णिब्भग्गाहिओ भुवणे ॥२८।। किं कामधेणुचिंता-मणिकामलयामरागपमुहेहिं । तुट्ठो जस्स कयंबो, पओयणं तस्स नन्नस्स ॥२९।।

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