Book Title: Stotra Granth Samucchaya
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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२२८
श्रीविजयपद्मसूरिविरचितः
सो गच्छइ निरयथले, पाएहि विणिग्गओ य जस्सऽप्पा | इय० ॥२८॥ तिरिगइगामी णेओ, उरुजुयला णिग्गओ य जस्सऽप्पा | इय० ||२९|| हियवा नरगइगामी, सुरगइगामी विणिग्गओ सीसा || इय० ||३०|| सव्वंगेहिं सिद्धो, अंतिमसमए विणिग्गओ जीवो || इय० ||३१|| वीसासो न विहेओ, कयावि भव्वा पमावलेसस्स | इय० ॥३२॥ भोगा रोगपयाई, सुहलेसो तत्तओ न ते हेया || इय० ||३३|| आणंदो न विहेओ, सुहसमए होइ सुखओ जम्हा || इय० ||३४|| दुहसमए न विसाओ, जं दुक्कयकयवरोहपविणासो ॥ इय० ॥३५॥ सुहजोगेहिं धम्मा- राहणसंगेण दुक्खविद्धंसो ॥ इय० ||३६|| अहिओ धणकोडीए, समओ इक्कोऽवि मणुयभावस्स || इय० ||३७|| मुत्तिदयं चारितं णच्चा सेविज्ज संजमं भावा ॥ इय० ||३८|| किज्जइ हेउगणेणं, जीवेणं जं मुणिज्ज तं कम्मं ॥ इय० ||३९|| भेया अट्ठ समासा, पण्णत्ता कम्मुणो मुणिदेहिं ॥ इय० ||४०|| नाणाविह पणभेया, नवभेयं दंसणावरणकम्मं ॥ इय० ॥ ४१ ॥ दोभेय वेयणीयं, अडवीसइभेय मोहणीयमिणं ॥ इय० ॥ ४२ ॥ चउरो जीवियभेया, गइक्कमेणं च निगडसारिच्छं | इय० ॥ ४३ ॥ तिनवइसगसद्धिविहं बायालीसप्पयारयं नामं ॥ इय० ॥ ४४|| गोयं दुविहं णेयं तहंतरायं पणप्पयारगयं ॥ इय० ॥४५॥ जंघाविज्झाचारण- भैया चारणमुणीण णायव्वा ॥ इय० ॥४६॥ विज्झाचारणलद्धी, छतवप्पमुहभावसंजाया । इय० ॥४७॥ जंघाचारणलद्धी, निरंतरद्रुमतवाइजोगेणं ॥ इय० ॥४८॥ गमणखणे गइविसओ, जंघाचारणमुणीण सिग्घयरो || इय० ॥ ४९ ॥ आगमणे सिग्घयरो, विज्झाचारणमुणीण गइविसओ ॥ इय० ॥५०॥ विमला होज्जा विज्झा, अब्भासा तारिसा न गइकाले | इय० ॥ ५१ ॥ समकारणा विलंबो, जंघाचारणमुणीण आगमणे ॥ इ६० ॥५२॥ कम्मुद भेयदुगं, रसप्पएसेहि होइ रसभयणा || इ० ॥ ५३ ॥ बंधो मुक्खो भावा, सुहाइहेउप्पसाहणा जाया ॥ ० ॥५४॥ विविहविवक्खा जोगा, पणदसभेया हवंति सिद्धाणं ॥ इय० ॥५५॥ आवरणिज्जगुणेहिं भेया कम्माण अनु पण्णत्ता ॥ इय० ॥ ५६ ॥ सोच्चा जिणवयणाई, पुग्गलविरई बुहेहि कायव्वा || इय० ॥५७॥ जयणाधम्मविसिद्धा, किरिया सुहदाइणी सुए भणिया ॥ इय० ॥५८॥ सड्डाणं चउभेया, दुहा विभिण्णप्पवित्तिजोगेहिं ॥ इय० ॥५९॥ साहावियपुण्णत्तं, जच्चरयणसंनिहं विबुहमण्णं ॥ इय० ॥६०॥
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