Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (भाष्य ) गाथाना भावार्थ उपर कहेल छे. ए प्रमाणे ते फलादिक द्वारो कहेवाया, हवे अनुयोगद्वारना भेद कथनपूर्वक एज अध्ययन विचाराय छे. त्यां उपक्रम वे प्रकारनो छे : १ लौकिक अने २ शास्त्रीय. त्यां १ नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, ४ क्षेत्र, ५ काल अने ६ भाव भेदथी लौकिक छ प्रकारनो छे. तेमां नाम अने स्थापना सुगम छे. द्रव्योपक्रम चे प्रकारनो छे : १ परिकर्म ने २ विनाशउपक्रम. सचेतन, अचेतन अने मिश्र अथवा द्विपद, चतुष्पद अने अपद ( वृक्षादि ) रूप जे द्रव्यनुं गुणांतर गुणविशेषनुं उत्पादन ते परिकर्म, अने द्रव्यनो नाश ते विनाश [ जेम घृत, रसायण वगेरेना प्रयोगथी मनुष्य बलवान थवा पामे छे ते परिकर्म अने तलवार वगेरेथी नाश कराय छे ते विनाश ]. एम ज क्षेत्र - शालिक्षेत्रादिनो हल वगेरे खेडवाथी परिकर्म अने हाथी वगेरे बांधवाथी नाश पामे छे ते विनाश, अज्ञात स्वरूप कालने नाडिकादि शंकुनी छाया अथवा घटिका वगेरेथी जाणवुं ते परिकर्म अने [ नक्षत्रादिनी गतिवडे काल जे अनिष्ट फलदायक थाय छे ते काल विनाश एटले विपर्यास ], न जणायेल गुरु प्रमुखना चित्तने इंगितआकारादिवडे जाणवुं ते भाव परिकर्म ( उपक्रम ). शास्त्र संबंधी उपक्रमो ६ प्रकारना छे, ते आ प्रमाणे- १ आनुपूर्वी, २ नाम, ३ प्रमाण, ४ वक्तव्यता, ५ अर्थाधिकार अने ६ समवतार. १. आनुपूर्वी. बीजे' स्थळे आनुपूर्वी दश प्रकारे कहेल छे, तेमां उत्कीर्त्तन अने गणना अनुपूर्वीमां आ अध्ययननो समवतार थाय छे. १. महाभाष्यनी टीकामां दश प्रकारनो कहेल छे ते आ प्रमाणे- १ नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, ४ क्षेत्र, १ काल, ६ गणना, ७ उत्कीर्तन, ८ संस्थान, ९ सामाचारी अने १० भावानुपूर्वी । For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir

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