Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kalassagersuri Gyanmandie श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ISER १ स्थानाध्ययने क्रमद्वारवर्णन. क्तिस्तु'-व्युत्पत्ति तो आ प्रमाणे छे-'उपक्रमणं' उपक्रम ए (१) भाव साधन छे. शास्त्रने न्यास देश (जे स्थाने लावधं छे ते)| स्थाने नजिकमां लाव. जे द्वारा गुरुना वचनयोगथी उपक्रम कराय छे ते (२) करण साधन, शिष्यनो श्रवण भाव छते जेमां उपक्रम कराय छे ते (३) अधिकरण साधन, आथी उपक्रम कराय छे अथवा विनीत शिष्यना विनयथी उपक्रम कराय छे ते (४) अपादान साधन. एची रीते 'निक्षेपणं निक्षिप्यते वाऽनेनास्मिन्नस्मादिति वा निक्षेपोन्यासः' निक्षेपण ते निक्षेप, | जेवडे, जेमा, अने जेनाथी निक्षेप करायेल छे ते निक्षेपना न्यास अने स्थापना ए पर्यायनाम छे. एम ज अनुगमनमनुगम् १ इत्यादि जेवडे, जे छते अने जेथी सूत्रना न्यासने अनुकूल व्याख्या करवी ते अनुगम. एम ज नयनं नय इत्यादि वस्तुनुं जाणवु ते नय, अथवा जेवडे जे छते अने जेथी वस्तु जणाय ते नय, अनंत धर्मात्मक वस्तुना एक अंशनुं जे ज्ञान ते नय कहेबाय छे. आ उपक्रमादि द्वारोनो आवी रीते क्रम करवामां शुं प्रयोजन छे ? ते कहेवाय छे. ८. क्रमद्वार. जे उपक्रम रहित छे ते समीपभूत् नथी, जे समीपभूत नथी तेनो निक्षेप नथी करातो, जे नामादिवडे निक्षेप नथी करायेल h] ते अर्थथी अनुगम करातो नथी, जे अर्थथी नथी जाणेल ते नयोथी विचारातुं नथी. एवी रीते एक ज क्रम छे. उक्तं च दारक्कमोऽयमेव उ, निक्खिप्पइ जेण नासमीवत्थं । अणुगम्मइ नानत्थं, नाणुगमो नयमयविहणो ॥ ११ ॥ ORDER ॥६ ॥ For Private and Personal Use Only

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