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श्रीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद
॥५॥
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जे अंग ते भावांग. अहं भावांगवडे अधिकार छे ते पण आगळ देखाडवामां आवशे. (८)
स्थानांग शब्दनो समुदायार्थ.
जेवी रीते स्थानांग सूत्रमां विषयनुं कथन करायेलुं छे तेवी रीते एकत्व आदि बडे विशेषणवाला आत्मादि पदार्थों जेमां रहे छे, बेसे छे अने निवास करे छे ते स्थान अथवा स्थान शब्दवडे अहिं एक आदि संख्याभेद कहेल छे. ते कारणथी आत्मादि पदार्थोंने प्राप्त थयेल एकथी दश पर्यंत स्थानोनुं कहेनार होवाथी स्थान. जेम आचारनो कहेनार होवाथी आचार सूत्र कहेवाय छे तेम स्थान जाणवुं. ते स्थान क्षायोपशमिक भावरूप सिद्धांत - पुरुषना अंग ( अवयव )नी जेम जे अंग ते स्थानांग (ठाणांग ) ए समुदायार्थ जाणवो.
५. द्वारो.
मां दश अध्ययनो छे. दश अध्ययनोमां पहेलुं अध्ययन ते संख्यामां एक होवाथी अने एक संख्यायुक्त आत्मादि पदार्थनो प्रतिपादक होवाथी एक स्थान छे. महान् नगरनी जेम तेना चार अनुयोग द्वारो होय छे ते आ प्रमाणे- १ उपक्रम, २ निक्षेप, ३ अनुगम, ४ नय, तेमां अनुयोजन ते अनुयोग अर्थात् सूत्रनो अर्थ साधे संबंध करवो ते, अथवा अनुरूप योग्य अथवा अनुकूल जे व्यापार एटले सूत्रना अर्थ कथनरूप ते अनुयोग. (जेम घट शब्दवडे घडो अर्थ कहेवाय छे) आह चअणुजोजणमणुजोगो, सुयस्स नियएण जमभिधेयेण । वावारो वा जोगो, जो अणुरुवोऽणुकूलो वा ॥९॥
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१ स्थाना
ध्ययने
द्वारवर्णन.
॥५॥