Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri Publisher: Abhaydevsuri View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir WEREDMINSUPEGETAIL स्थान.१३. गणना-एक बेथी लइने शीर्षप्रहेलिका पर्यंत जे गणित ते गणना स्थान. १४, संधान-द्रव्यथी कटका करायेल कांचळी वगेरेनु जे जोडाण ते छिन्नद्रव्यसंधान अने रुनी पुंणीथी उत्पद्यमान तंतु ( तांतणा) आदिनुं जोडाण ते अच्छिन्नद्रव्यसंधान. भावथी तो १. प्रशस्तच्छिन्नभावसंधान-ते अप्रशस्तभावमां जइने फरीथी प्रशस्तभावनुं जे जोडाण (प्रसन्नचंद्र राजर्षिनी जेम) ते अने २. अप्रशस्तच्छिन्नभावसंधान-ते औदयिक भावथी चडीने औपशमिकादि भावमा आवीने पुनः औदयिक भावमा जवू ते. हवे ३. अच्छिन्नप्रशस्तभावसंधान ते प्रशस्त भावमा क्षपकादिनी माफक (भरत महाराजानी जेम ) आगळ ( उपर) चडता जवू. ४. अच्छिन्नअप्रशस्तभावसंधान-अप्रशस्तभावमां नीचे छेक ऊतरतां जq ते. उपशमश्रेणिथी पडतां मिथ्यात्व पर्यंत जनारा विगेरे ते (उपरोक्त) प्रशस्तादि भावनुं जे संधान ते ज स्थान, वस्तुनुं एकत्रितपणे जे अवस्थान ते संधान स्थान. १५. भावस्थान-औदयिकादि भावोनुं स्थान एटले अवस्थिति रहेवू त भावस्थान. एवी रीते अहिं स्थान शब्द अनेकार्थ छे. प्रस्तुत विषयमा वसतिस्थान अने गणनास्थानवडे अधिकार छे ते बताववामां आवशे. (७) हवे अंग शब्दनो निक्षेप कहेवाय छे. तत्र गाथानामंग ठवणंगं, दव्वंग चेव होइ भावंगं । एसो खलु अंगस्सा, निक्खेवो चउव्विहो होइ ॥८॥ तेमां नाम अने स्थापना प्रसिद्ध छे, मद्य औषधादि द्रव्यनुं अंग कारण अथवा अवयव ते द्रव्यांग, क्षयोपशमादि भावनुं १. प्रशस्तच्छिन्नभावसंधानादि चार भेद- वर्णन टीकामां साक्षा होवाथी आचारांगनी टीकाथो स्पष्टीकरण करेल छे. For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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