Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. समुदायार्थ. फल (प्रयोजन ), योग अने मंगल ए त्रण द्वारोनु कथन करवा पछी हवे समुदायार्थनो विचार कराय छे. त्यां स्थानांग ए शाखनुं नाम छे. यथार्थादि भेदथी नाम त्रण प्रकारना छे. ते आ प्रमाणे-१ यथार्थ, २ अयथार्थ, ३ अर्थशून्य. तेमां यथार्थ नाम ते प्रदीप, घट विगेरे, अययार्थ नाम ते पलाश (खाखरो) वगेरे अने अर्थशून्य ते व्युत्पत्ति अर्थ रहित डित्थादि. ते त्रणमा ज समुदायार्थनी परिसमाप्ति होवाथी शास्त्र नाम यथार्थ छे. जे कारणथी एम ज छे ते ज कारणथी तेनुं निरूपण कराय छे. 'स्थान' अने 'अंग' ए बे पद निक्षेप करवा योग्य छे. तेमां स्थान शब्द नाम, स्थापनादि भेदथी पंदर प्रकारचें कयुं छे. नामंठवणादविए-खेतऽधा उई उवरती वर्सही। संजमपग्गहजोहे," अचलगणणसंधाभावे" ॥७॥ १. तेमां स्थान एवं जे नाम ते नामस्थान, जे सचेतन अथवा अचेतन वस्तुनुं स्थान ए, नाम कराय छे, ते वस्तुनामवडे स्थान एटले नामस्थान कहेवाय छे. २. तेमज स्थापाय छे ते स्थापना अक्षादि, ते स्थानना आशयवडे जे स्थपायेल ते स्थान कहेवाय छे. तेथी स्थापना एज स्थान ते स्थापना स्थान. ३. द्रव्य-सचित्त, अचित्त अने मिश्र भेदरूप छे. ते गुणपर्यायनो .. १. चंदनक ( एक शंखनी जात) वगेरे जे स्थापनाचार्य तरीके स्थपाय छे. For Private and Personal Use Only

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