Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRESTHETTYSHARRESE ३. मंगल. तथा आ अनुयोग (सूत्र ) श्रेयभूत होवाथी विघ्न थवानो संभव छते विनवडे हणायल छे शक्ति जेओनी एवा शिष्यो, एमां प्रवृत्ति न करी शके ते हेतुथी विघ्ननी शांति माटे मंगल करवु उचित छ. उक्तं चवहविग्घाई सेयाई, तेण कयमंगलोवयारेहिं । घेत्तव्वो सो सुमहा-निहिव्व जह वा महाविज्जा ॥४॥ शुभ कार्यों घणा विघ्नोवाळा होय छे, ते कारणथी मंगलोपचार करीने ते उत्तम रत्न-निधान अथवा महाविद्यानी पेठे | ग्रहण करवा योग्य छ (४) वळी मंगळ क्रमशः शास्त्रनी शरूआतमां, मध्यमां अने अंतमा शास्त्रार्थनी विनरहित समाप्ति माटे, तेनी ज स्थिरता माटे अने तेनी ज अविच्छिन्न परंपरा माटे (आदि, मध्य अने अंत्य मंगल ) करवु जोईए । तदुक्तं आदिमंगलतं मंगलमाईए, मज्झे पजंतए य सत्थस्स । पढमं सत्थत्था-विग्धपारगमणाय निद्दिष्टं ॥५॥ तस्सेव य थिज्जत्थं,मज्झिमयं अंतिमंपि तस्सेव। अब्बोच्छित्तिनिमित्तं, सिस्सपसिस्साइवंसस्स॥६॥ आ बने गाथाओनो भावार्थ उपर कहेल छे. तेमां आदि मंगल-'सुयं मे आउसं तेणं भगवया' इत्यादि सूत्र छे अथवा आयुष्मता भगवता (आयुष्मान् भगवानवडे) आशब्द, भगवान, बहुमान गर्भमा होवाथी मंगलरूप छे. अर्थात् नंदी अने STERNFSARASHTRAKHAR For Private and Personal Use Only

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