________________
गा० १]
(२) [ स्तव-परिज्ञा ( हिन्दी ) भावार्थ चन्द्रिका अथ स्तव-परिज्ञया प्रथम देशना देश्यया
__गुरोर्गरिम-सारया स्तव-विधिः परिस्तूयते । इयं खलु समुद्धृता स-रस-दृष्टि-चादा-ऽऽदितः
श्रुतं निर-ऽघमुत्तमं समय-वेदिभिर्मण्यते. ॥ १॥
अब,
श्री-तीर्थकर प्रभु की प्रथम-देशना रूप और
गंभीर सार से भरपूर श्री स्तव परिज्ञा-नामक ग्रन्थ द्वारा (द्रव्य और भाव रूप) स्तव का विधि
का प्रारंभ करता हूँ। इस (स्तव-परिज्ञा ) ग्रन्थ का उद्धार श्री दृष्टिवाद आदि से किया गया है,
और श्री शास्त्रज्ञ महापुषो का कहना है कि--- ___"यह निर्दोष और उत्तम शास्त्र-ग्रन्थ है" ॥१॥ "स्तव-परिज्ञा" ग्रन्थ खूब उपयोगी है।" यह समझकर, (श्री हरिभद्र सूरीश्वरजी विरचित ) पञ्च वस्तु शास्त्र में जिस प्रकार देखने में आया है, उसी प्रकार सेइस प्रकार लिखा जाता है,
(१ प्रास्ताविक ) "एअमिहमुत्तम-सुअं 'आई'-सद्दाओ थय परिणा-ऽऽई."।
"वणिज्जइ जोए थओ दु-विहो वि गुणा ऽहि-भावेण." ||१|| * यहां
''यह उत्तम शास्त्र है" यह आदि शब्द से "स्तव-परिज्ञा" आदि प्राभतों को समझने चाहिये।
(२ प्रारंभ ) जिस ग्रन्य में
गौण और मुख्य भाव से दोनों प्रकार के भी स्तवों का वर्णन हो, उसका नाम स्तव परीक्षा है ।। १ ।।
पाठकों को सूचना-पंच.वस्तु ग्रन्थ गत विशेषता [ ] इस प्रकार के कोष्टक में, और--संपादकीय विशेषता ( ) इस प्रकार के कोष्टक में-प्रायः निर्दिष्ट है। संपादक।