Book Title: Stav Parigna
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Shravak Bandhu

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Page 175
________________ गा० १२४-१२५ ] (६२) [ हिंसा अहिंसा "तो यज्ञ में वेद से हिंसा थोड़े जीवों की ही होती है।" + “एसा आग्रह से" कहने का क्या है ? + "कहना यह है कि-समानता है। शास्त्र वचनों से (वैसी हिंसा भी) सभी धर्म के लिए ही है। इस कारण से वह हिंसा दोष रूप नहीं है।" ॥१२३ : * इस प्रकार वादि ने अपना पक्ष स्थापित करने पर ( आचार्य श्री ) कहते हैं "एयपि ण जुत्ति-खमं, ण वयण-मित्ता उ होइ एवमिअं.। .. ___ संसार-मोयगाण वि धम्मो-5-दोस-प्पसंगाओ. ॥१२४।। * "(तुमने जो कहा) वह युक्ति-पूर्ण नहीं है।" + "क्यों ?" * 'युक्ति रहित वचन मात्र से सभी (सत्य) नहीं हो सकता है।" .. * "क्यों ?" "संसार-मोचक धर्म को मानने वालों का धर्म में दोष रहेगा नहीं। क्योंकि-वह निर्दोष बन जायमा" ॥१२४।। विशेषार्थ संचार-मोचक धर्म को मानने वालों का मत है कि- "दुःखियों को मार देना चाहिए, जिससे वे दुःख से मुक्त हो जाय ।" वह तो बड़ा अधर्म है, तथापि वह भी बड़ा धर्म हो जायगा। और वह कृत्य निर्दोष ठहरेगा, और ऐसे ऐसे जो कार्य होगा, वह सभी निर्दोष-धर्म रूप ठहरेगा । इसे अति प्रसंग दोष इस बात में रहा है ॥१२४।। "सिय, "तंण सम्म-वयणं.” “इयरं सम्म वयणं-ति" किं माणं ?" "अह लोगो च्चिय" णेयं, [न] तहा(s-)पाठा, विगाणा य.” ॥१२५॥ * " ठोक है, किन्तु-"उन (संसार-मोचको) का वचन ठीक नहीं है।" तो दूसरो का ( आपके शास्त्रकारों का ) वचन अच्छा है," इसमें कौनसा प्रमाण है ?" . (आप कहोगे कि-) 'लोक ही प्रमाण भूत है।"

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