Book Title: Stav Parigna
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Shravak Bandhu

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Page 186
________________ गा० १४६- ] (७३ ) [ हिंसा धर्म न हो सके क्योंकि श्रुति में ही कहा गया है कि "स्वर्ग की इच्छा वालों को श्वेत और वायव्य (?) बकरे को मारना चाहिए ।" ॥ श्वेतं वायव्यम अमाऽऽलमेत भूति कामः ॥ " मोक्ष का फल तो " इत्यादि प्रकार का श्रुति का वचन है। सुवचन सु आगम दे सकता है । दोष वचन - अर्थ - काम आदि देने वाला बच्चन समान रहता है, स्वर्गादि फल मिलने पर भी अर्थ शास्त्रादि के वचन समान रहता है । मोक्ष-फलक सुवचन नहीं रहता है ॥ १४५ ॥ + "यहां पर, आगम से विरोध भी बतलाया जाता है "अग्गी मा एआओ एणाओ मुचउ" सि य सुई वि. 1 atra-फला "अंधे तमम्मि " इच्चा - SSइ व सई वि. ।। १४६ ।। "वेद में श्रुति में - वाक्य है, कि"अग्निर्मामेतस्मादेन सो मुञ्चतु ।" "अग्नि मेरे को इस पाप से मुक्त करा दो ।" ( यहां " मुञ्चतु " शब्द का अर्थ छादंस होने से "मुक्त करा दो" ऐसा होता है ! अर्थात् "हिंसा पाप का फल से मुक्त करा दो ।" यह भाव है । और "अन्धे तमसि ०" -इत्यादि स्मृति का वाक्य भी है ।। १४६ ॥ विशेषार्थ “ अन्धे तमसि मज्जामः पशुभिर्ये यजामहेः । "हिंसा नाम भवेद्धर्मो न भूतो न भविष्यति ॥ " इस प्रकार स्मृति का भी वाक्य है । "हम लोग पशु से जो यज्ञ कर रहे हैं, तो अन्धकार मय तमस् नामक नरक में डूब रहे हैं ।" “हिंसा धर्म नहीं हो सकता है, भूतकाल में नहीं हुआ है, और भविष्य में भी नहीं होगा ।" [अपेक्षा समझनी चाहिये । सं० ]

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