Book Title: Stav Parigna
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Shravak Bandhu

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Page 191
________________ गा० १६१- ] ( ७८ ) [ थोड़ा दोष भी लाभप्रद एवं णिवित्ति - पहाणा विष्णेया तत्तओ अहिंसेयं. । जयणावओ उ विहिणा पूआ - SSइ-गया वि एमेव ।। १६१ ।। " + इन गाथाओं की व्याख्या- 'यतना का कारण से ही थोड़े अंश में सदोष होने पर भी, श्री (आदि) जिनेश्वर देव ने शिल्प आदि का जो विधान किया है, वह यतना पूर्वक होने से निर्दोष है। क्योंकिअनुबंध में - परिणाम में बहुत दोषों का निवारण करने वाला रहता है ।। १५७ ।। वही बात कही जाती है, वह जिनेन्द्र भगवान् उत्तम बोधि की प्राप्ति से लेकर सर्वोत्तम पुण्य युक्त होते हैं, और उसी प्रकार का स्वभाव वाले होने से एकान्त से दूसरे जीवों के हित में तत्त्पर रहते हैं । प्रभु योग विशुद्ध योग वाले और महा सात्त्विक थे ।। १५८ ।। - इस कारण से, प्रजा की रक्षा के लिए (प्राणियों की रक्षा के लिए भी) जो अधिक गुणकर - फायदा पहुंचाने वाला हो, ऐसा समझकर उसको ही प्रभु बतलाते हैं । जिसको अनुबन्ध से जैसा योग्य हो, वही बतलाते हैं । तो उसमें किस प्रकार दोष हो सकता है ? ॥ १५९ ॥ वही स्पष्ट किया जाता है— उस ( शिल्पादि विधान बताने) में जगद्गुरु का प्रधान अंश इस जगत् में बहुदोषों की रुकावट करने को रहता है । जिस तरह खड्ड में पड़े हुए पुत्र का जीवन का सर्प से रक्षण करने के लिए माता बालक को खींच लेती है, और कंटकादि लगने से दुःख भी उत्पन्न होता है तथापि, शुभ योग होने से यह खींचना दोष रूप नहीं होता है । किन्तु बहुदोषों का निवारण रूप होता है ।। १६० ।। विशेषार्थ एक बालक खड्ड े में गिर गया । सामने से बिल से निकल कर एक विषैला सर्प आ रहा था । माता ने पुत्र की परिस्थिति जान ली । शीघ्रता से दौड़ कर खड्ड े से पुत्र को हाथ पकड़ जल्दी से खींच लिया गया । पुत्र के शरीर में कांटे लगे, घर्षण से कुछ रुधिर भी निकला । ये दोष हुवे भी । किन्तु, पुत्र को

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