Book Title: Stav Parigna
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Shravak Bandhu

Previous | Next

Page 193
________________ गा० १६४-१६५-१६६-१६७ ] (८०) [ अनाशातना और अहिंसा विशेषार्थ पूज्य की आशातना होती है, और पूजक को हिंसादि में प्रवृत्त रहना पढ़ता है । ऐसे दुर्बल तर्क रख दिये गये हैं ॥ १६३ ।। * इस विषय में जवाब दिया जाता है, कि "उवगारा--भावेऽपि हु चिंता-मणि-जलण-चंदणा-ऽईणं । विहि-सेवगस्स जायइ तेहिं तो सो- पसिद्धमिणं. ॥ १६४ ।। चिन्तामणि रत्न, अग्नि और चन्दनादिक को उपकार न होने पर भी उन्हीं का विधिपूर्वक सेवन करने वाला पुरुष को उन्हीं से उपकार-लाभ होता ही है । यह बात लोक में प्रसिद्ध भी है। रत्न से दारिन्ध जाता है, अग्नि की सेवा से शीत मिटता है । चन्दन का .' उपयोग करने से उष्णता दूर होती है । वे लोक प्रसिद्धि से जड़ होने पर भी उन्हीं को सेवा से उपकार-लाभ होता है न ?” ॥ १६४ ।। इअ कय-फिच्चेहितो तष्भावे णस्थि कोइवि विरोहो.। एत्तोच्चिअ ता (ते) पुज्जा का खलु आसायणा तीए ? ॥ १६५ ॥ इस प्रकार-कृतकृत्य पूज्यों (की पूजा) से भी उपकार होता है । इस कारण से-उनको पूजा में कोई विरोध नहीं है। इस कारण से-कृतकृत्य. गुण को धारण करने वाले होने से वे भगवंत पूज्य है । तो उन्हीं की पूजा से कौनसी आशातना ? ॥ १६५ ।। (और भी लाभ बताये जाते हैं-) अहिगरण-[ग-णि] णिवित्ति वि इहं भावेणाऽहिगरणा णिवित्तिओ. । तहसण-सुहजोगा गुण-तरं तीए परिसुद्धए ॥ १६६ ॥ (जिन पूजा में) भाव से अधिकरणों की आरंभादिक को निवृत्ति रहने से अथिक (दोष) निवृत्ति भी होती है । और उनके दर्शन में शुभ योग का उपयोग होने से उस पूजा से ओर शुद्ध गुणों की प्राप्ति भी होती है ।।१६६।। ता एम-गया चेवं हिंसा " गुणकारिणि" ति विन्नेआ. । तह मणि-णायओघिय एसा अप्पेह जयणाए. ॥ १६७ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210