Book Title: Stav Parigna
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Shravak Bandhu

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Page 159
________________ गा० ९८-९९-१००- ] (४६) [ द्रव्य और भाव स्तव का परस्पर संबन्ध बल से वह आत्मा चारित्र का अन्त तक पहुँच जाता है, उसी कारण से, वह आत्मा (द्रव्य स्तव से भी)-शुद्ध आराधना को प्राप्त कर सकता है ।। ९७ ॥ * यही कहा जाता है, णिच्छय-नया जमेसा चरण पडिवत्ति-समयओ पभिई । आ मरण-ऽतमऽ[ज वस्सं संजम-परिपालणं विहिणा. ॥ ९८ ।। निश्चय नय के मत से तो-इस आराधना-चारित्र का स्वीकार करने का समय से लेकर, मरण पर्यन्त निरंतर विधि पूर्वक संयम का परिपालन करना ही क्योंकि-निश्चयनयके मत से यह ही आराधना है ।। ९८ ।। आराहगो य जीवो-सत्तऽह भवेहि सिज्झइ णियमा । संपाविऊण परमं हंदि अह-क्खाय-चारित्तं । ९९ ॥ इस प्रकार से आराधना करने वाला-आराधक जीव (परमार्थ से) सात आठ भव में अवश्य मोक्ष प्राप्त करता है ! किस तरह मोक्ष प्राप्त करता है ? कषाय के उदय से सर्वथा रहित उत्तम यथा-ख्यात चारित्र को प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है ।। ९९ ॥ दव्व-त्थय-भाव-स्थय-रूवं एअमिह होइ दृढव्वं,- । अण्णुण्ण-समणुविद्धं णिच्छयओ भणिय-विसयं तु ।। १०० ।। पञ्चाशक ६.२३॥ * इस प्रकार सेद्रव्य स्तव का और भाव स्तव का स्वरूप यहां ठीक रूप से इस प्रकार समझ लेना चाहिये, कि .. गौण रूप से और प्रधान रूप से प्रत्येक परस्पर में गुंथा हुआ रहता है। क्योंकि-दोनों ही-श्री अरिहंत भगवंत की साथ संबंध रखने वाले हैं। १००॥ विशेषार्थ द्रव्य-स्तव और भाव स्तव दोनो ही श्री अरिहंत प्रभु के साथ संबंध रखने वाले हैं, तथापि-दोनों के स्वरूप में भेद भी है, जिस तरह- १ पुष्प पूजा रूप-अंग. पूजा, आमीष-नैवेद्य पूजा रूप-अग्र पूजा, स्तुति रूप-भ व पूजा और प्रभुनी

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