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गा०९-१०- ]
(६) ___ [ काष्ठादि-दल-शुद्धि श्री जिन मन्दिर बनवाने में काष्ठादि-दल-पदार्थ-वही शुद्ध होती है, कि जो१. देवताओं आदि के वागों से
और २. आदि-शब्द से श्मशान आदि से लिया गया न हो, ३. अ-विधि से लिया गया न हो,
(अर्थात् बेल आदि को कष्ट पहुँचा कर न लाया गया हो।) ४. और (ईंट आदि स्वयं पकाकर न बनाया गया हो, किन्तु दूसरों से
उचित मूल्य से खरीदा गया हो) ॥ ८॥ तस्स वि अ इमो णेओ सुद्धा-5-सुद्ध परिजाणणोवाओ,:-। . तक्कह-गहणाओ जो सउणेयर सनिवाओ उ, ॥९॥
और वह-काष्ठादि पदार्थो की शुद्धि और अ-शुद्धि जानने का उपाय यह समझना चाहिये,- उन पदार्थों को १. प्राप्त करने का खरीदी-सौदा-वार्तालाप करने का
और २. ग्रहण करने का
१. शुभ शकुनो की उपस्थिति में हो, तो शुद्धि। २. और अशुभ शकुनो की उपस्थिति में हो, तो-अशुद्धि ।। ९ ॥
शुभ और अ-शुभ शकुने नंदा-ऽऽइ-सुद्धो सद्दो, भरियो कलसो य सुन्दरा पुरिसा, ।
सुह-जोगाऽऽइ य सउणो. कंदिय-सदा-ऽऽइ इयरा उ. ॥१०॥ + १. शुभ शकुन-१ वाजीन्त्र आदि के मांगलिक शब्द,
२ शुभ जल आदि से भरा हुआ पूर्ण कलश (घडा), ३ धर्मनिष्ठ पुरुषों का सामने दर्शन .
४ लग्नादि शुभ व्यवहार का योग *२. अ-शुभ शकुन- रुदन आदि के शब्द, इत्यादि, ॥१०॥
दल शुद्धि समाप्त