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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
आयारो में इस प्रकार जहाँ एक ओर प्रयोजन- सापेक्ष हिंसा की अर्थवान और निरर्थक विमा का उल्लेख मिलता है वहीं एक दूसरी विमा, जो काल-सापेक्ष है, भी बतलाई गई है। इसके अनुसार (देखिए, ४०/१४०, ऊपर उद्धरित) (i) कुछ व्यक्ति (हमारे स्वजनों की) हिंसा की गई थी (भूतकाल) इसलिए वध करते हैं तो कुछ (ii) इसलिए कि लोग हिंसा कर रहे हैं (वर्तमान), वध करते हैं तथा कुछ (iii) इसलिए भी हिंसा में प्रवृत्त होते हैं कि उन्हें (भविष्य में) सम्भावना लगती है कि हिंसा की जाएगी
__ प्रथम प्रकार की हिंसा स्पष्ट ही भूतकाल से प्रेरित हिंसा है, क्योंकि विगत में कभी (परिजनों की) हिंसा की गई थी इसलिए व्यक्ति हिंसा करता हैं। इसे हम प्रतिशोधात्मक हिंसा कह सकते हैं। इस तरह की हिंसा में विगत हिंसा का बदला लेने के लिए हिंसा की जाती है।
द्वितीय प्रकार की हिंसा वर्तमान में हो रही हिंसा के प्रतिक्रिया स्वरूप की जाती है. क्योंकि आज कुछ लोग हिंसा में प्रवृत्त हैं इसलिए उसका जबाब देने के लिए इस प्रकार की हिंसा में प्रतिक्रिया स्वरूप, जबाबी आक्रमण किया जाता है। इसे हम प्रतिक्रियात्मक हिंसा कह सकते हैं।
तृतीय प्रकार की हिंसा में व्यक्ति भविष्य की आशंका में, इस डर से कि कहीं हमारे ऊपर हिंसा न हो जाए, हिंसा पर उतारू हो जाता है। इस प्रकार की हिंसा को हम आशंकित हिंसा या भयाक्रांत हिंसा कह सकते हैं।
यह जानना एक दिलचस्पी का विषय हो सकता है कि आज के विख्यात मनोविश्लेषक एरिक फ्रॉम ने हिंसा के जो अनेक प्ररूप बताए हैं उनमें भूतकाल प्रेरित (प्रतिशोधात्मक) हिंसा और वर्तमान प्रेरित (प्रतिक्रियात्मक), हिंसा का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। उन्होंने हिंसा का एक प्रकार, क्रीड़ात्मक हिंसा भी बताया है लेकिन क्रीड़ात्मक हिंसा से उनका तात्पर्य मनोरंजन या प्रमोद के लिए हिंसा से न होकर खेलते समय (जूडो-कराटे, मुक्केबाजी इत्यादि) में जो हिंसा कभी-कभी हो जाती है उससे है। वे ऐसी क्रीड़ात्मक हिंसा को बुरा नहीं मानते। उसे वे जीवनोन्मुख मानते हैं।
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