Book Title: Sramana 1999 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ श्रमण/अप्रैल-जून १९९९ करते हैं। किन्तु महावीर 'आत्मतुला' पर ही सबको तीलने के पक्षधर हैं। जब तक हम दूसरे प्राणियों को भी आत्मवत् नहीं समझते, हम वस्तुतः अपनी रक्षा भी नहीं कर सकते। सबकी रक्षा में ही अपनी रक्षा भी सम्मिलित है। इसीलिए महावीर कहते हैं, सभी लोगों को समान जानकर, व्यक्ति को शस्त्र से, हिंसा से, उबरना चाहिए 33 समयं लोगस्य जाणित्ता, एत्थ सत्थोवरए । (आयारो पृ० १२२ / ३) यहाँ यह द्रष्टव्य है कि महावीर ने हमें यह जो हिंसा-अहिंसा विवेक के लिए आत्मतुला का मापदण्ड दिया है, उसे किसी न किसी रूप में अन्य दर्शनों/ दार्शनिकों ने भी अपनाया है। इस सन्दर्भ में पाश्चात्य विख्यात दार्शनिक काण्ट का नाम सहज ही स्मरण हो आता है। काण्ट, यद्यपि जैनदर्शन से निश्चित ही अपरिचित रहे होंगे लेकिन उन्होंने नैतिक आचरण के जो मापदण्ड दिए हैं उनमें से एक आत्मतुला की ओर ही करता है। उनके अनुसार मनुष्य को ठीक उसी तरह व्यवहार करना चाहिए जैसा कि वह अपने लिए दूसरों से अपेक्षा करता है । काण्ट का कहना है कि व्यक्ति को सदैव ऐसे सूत्र के अनुसार काम करना चाहिए जो सार्वभौम नियम बन सके "Act only on that maxim (or principle), which thou canst at the same time will to become a universal law. " दूसरे शब्दों में हम दूसरों के प्रति कोई ऐसा काम न करें जिसे हम अपने लिए गलत समझते हों । महावीर की 'आत्मतुला' के सन्दर्भ में यदि हम देखें तो इससे यह अर्थ निकलेगा कि यदि हमें हिंसा अपने लिए प्रिय नहीं है तो हमें दूसरों की हिंसा नहीं करनी चाहिए। अहिंसा ही एक ऐसा नियम हो सकता है जिसे सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जा सकता है, हिंसा नहीं । — हिंसा का प्ररूप- विज्ञान (Typology) यद्यपि जैन धर्मग्रन्थों में अन्य स्थानों पर हिंसा के अनेक प्ररूपों का वर्णन और वर्गीकरण हुआ है; किन्तु आयारो में स्पष्ट रूप से हिंसा का कोई प्ररूप विज्ञान नहीं मिलता, परन्तु एक स्थल पर हिंसा की दो विमाओं (Dimensions) का उल्लेख किया गया है (४०/१४०)। इसमें कहा गया है कि कुछ लोग प्रयोजनवश प्राणियों का वध करते हैं; किन्तु कुछ व्यक्ति बिना प्रयोजन ही वध करते हैं। इस प्रकार हिंसा अर्थवान् भी हो सकती है और अनर्थ भी हो सकती है। इसी गाथा में आगे चलकर हिंसा की एक और विमा बताई गई है जो हिंसा को तीनों कालों - • विगत, वर्तमान और भविष्य से जोड़ती है। हिंसा इस प्रकार भूत-प्रेरित हो सकती है, वर्तमान प्रेरित हो सकती है और भविष्य प्रेरित भी हो सकती है - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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