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१२ ] १४:४२ हरिद्राभिजाति सर्व वस्त्र त्यागी-आजीवक गृहस्थ(एलक
५ शुक्लाभिजाति-प्राजीवक श्रमण, श्रमणी ... ६-परम शुक्लाभिजाति-आजीवक धर्माचार्य नंदवत्स किस सकिश्च और मक्खली गौशाला वगैरह। ___ इन अभिजातियों का परमार्थ यह है कि अधिक वस्त्र वाले मनुष्य प्रथम पायरी पर खड़ा है अल्प बत्र वाला बीच में खड़ा है और बिलकुल नग्न छठी पायरी पर जा पहुचा है। ___ इस हिसाब से बौद्ध श्रमण दूसरी कक्षा में जैन निर्ग्रन्थ तीसरी
और आजीवक श्रमण पाँचवीं कक्षा में उपस्थित है। साफ बात है कि उस काल में निर्ग्रन्थ श्रमण वस्त्रधारी थे और आजीवक श्रमण नंगें रहते थे।
(एन साई क्लोपीडिया ऑफ रीलिजियन एण्ड एथिक्स वॉ० । पृ० २१९ का आजीवक लेख)
३-लोहित्या भिजाति नाम"निग्गं था-एक साटिक"ति वदन्ति। लोहिता भि जाति माने वस्त्रवाल जैन निर्गन्थ। .
दि० बांबू कामता प्रसादजी कृत "महावीर और बौद्ध) यह पाठ भी ऊपर के पाठ का ही उद्धृत अंश है । इसमें जैन साधुओं को सवस्त्र माना है।
४--पाणीनीय व्याकरण में "कुमारश्रमणादिभिः"सत्र से गणधर श्री कशिकुमार का उल्लेख है ये प्राचार्यभी वस्त्र धारी थे इन्होंने गणधर श्री गौतम स्वामी से प्राचार पर्यालोचना की थी।....
___ (उतराध्ययन सूत्र अ०) pix-कलिंगाधिपति सम्राटू खारवेल ने जैन मुनिओं को वस्त्र दान किया था ऐसा उसके उत्कीर्ण शिला लेख में लिखा गया है।