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भय जी तमिन्ना : बभय का आलोक
ग्वाले महावीर के पीछे-पीछे आ रहे थे। उन्होंने पेड़ पर चढ़कर दूर से सब कुष्ट देवा । वे आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने दूर-दूर तक यह संवाद पहुंचा दिया कि योगिया' गान्त हो गया है । कनकल नाधम का मार्ग अब निरापद है । पर गार्ड आदमी इससे आ-जा सकता है। जनता के लिए यह बहुत ही शुभसंवाद पा। यह होत्फुल्ल हो गई। हजारों-हजारों बादमी वहां आए। उन्होंने देखा गंटप मे मध्य में एक योगी ध्यानमुद्रा में खड़े हैं और उनके मामने विषधर प्रशान्त मुद्रा में बैठा है। जिसका नाम सुनकर लोग भय से कांपते थे, उसी विषधर के पाम लोग जा रहे हैं । यह कुछ विचित्र-सा लग रहा है । उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा है । भगवान् महावीर पन्द्रह दिन तक यहां रहे। उनका यह प्रयास अभय और मंत्री की कसौटी, ध्यानकोष्ठ में वाह्य-प्रभाव-मुक्ति का प्रयोग, अहिंसा की प्रतिष्ठा में पूरता का मृदुता में परिवर्तन बोर जनता के भय का निवारण-इन चार निष्पत्तियों के साथ सम्पन्न हुआ।
३. बभी साधना का दूसरा वर्ष चल रहा है। भगवान् मुरभिपुर से थूणाक मनिवेग की ओर जा रहे हैं। बीच में हिलोरें लेती हुई गंगा बह रही है । भगवान् उगम तट पर उपस्थित हैं। सिद्धदत्त पी नौका यातियों को उस पार ले जाने को नयार पड़ी है। सिद्धदत्त भगवान् ने उसमें चढ़ने के लिए आग्रह कर रहा है। भगवान् उसमें आएद हो गए है।
गोका गन्तव्य की दिशा में बन पड़ी। यात्री बातचीत में संलग्न हैं। महावीर अपने ही ध्यान में लीन है । नोका नदी के मध्य में पहुंच गई। प्रपति ने एक नया दाय उपस्थित किया। आकाश बादलों में घिर गया। विजली कोधने लगी। गरिव से मद पुर ध्वनिमय हो गया । तूफान ने तरंगों को गगनचुम्बी बना दिला नाका एगमगाने लगी। यात्रियों के हृदय पांप उठे। इस स्थिति में भी मापीर जननीका के एक गोने में मान्तभाव से बैठे है। उनका ध्यान अधिकार है, मानोज प्रकृति मेमरोगप का पता ही नहीं।
भरभय को उत्पन्न करता, अभय, अभय को । नहा की उत्पत्ति या जैविक frara मनुष्य की माननिय पत्तियों पर भी पटित होता है। महावीर के अभार मीना भयभील धादियों में अभय गा मंगार कर दिया। उनकी भरमाको देय मालगाए। सानिमा बाग भी शान हो गया। नौका में कों को सर पर पगा दिया। मावीर मानुसार की महानदी को पार पर Om पर पहुँच गए।