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तीन या मिहावलोकन
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ने ! क्या भगवान् को भोजन करना इष्ट नहीं था? 'गौतम ! मैं इसका उत्तर एकान्त की भाषा में नहीं दे सकता ।जाना की तुष्टिका लिए मैंने भोजन किया । उसने बाधा सन्न करने वाला भोजन ने नहीं पिया 1 या नापेक्षता है। मैं अनाग्रह के दोष पर नापनता का दीप जलाना
___ मते ! श्रमणों ने पहले से ही अनेक दीप जला ले हैं, जिनका दीप जलाने मी मा आवश्यकता है?
'गौतम ! मैं मानता हूं भगवान् पावं ने प्रवर ज्योति प्रचलित की थी। बिन्नु माज वह कुछ क्षीण हो गई है। उसमें पुनःप्राण शूकना आवश्यक है।'
मते ! वारह वर्ष तक नाप बफेले रहे, कत्र आपको संक-निनांग की
माता यां हुई?' 'गौतम ! मुले अहिमा और सापेनता को जनता तक पहुंचाना है। उसे जनता . माध्यम से ही पहुंचाया जा सकता है । धर्म की उलति और नितिनमान में
it iशून्य में नहीं होती।' __ भने ! फिर लम्बे समय तक शून्य में रहने का क्या अर्थ है ?
'गोलम ! उसका अर्थ या शून्य को नरना। अपनी गन्यता को भरविना दमागी हाल्पता नो भरा नहीं जा सकता। मैं साधना-काल में लगभग भला दान सभा में उपस्थिति, न प्रवचन और न संगठन ! तत्त्व-चर्चा भी बहुत कम।
नाना-माल का बारहवां चातुर्मास चम्पा में बिताया। मैं स्वातिदत्त ब्राह्मण की निशाला में रहा । एक दिन स्वातिदत्त ने पूछा
“भो ! मारमा गया है ? 'जो अहं (M) का अनुभव है, वही आत्मा है।' सो पाना है?'
भो ! मम का अर्थ ?' ' सोनों द्वारा गृहीत नहीं होता।'
मामाक्षाकार पांसे पिया जा सकता है ?' भोपाल में लगा। २८. मात्मा की पोज में लग गए। मुजे आत्मा ही प्रिय रहा है।
को बारी मोट की है और यदा-कदा दूसरों को उस दिशा में जाने
में गो में परमिप्य भी दनाया। उसका नाम था