Book Title: Shraman Mahavira
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 339
________________ परिजिप्ट ४ ३११ ६ १. आवश्यक णि, पूर्वभाग, पृ० २४६, २४५ : अधिनमयास जाते भगवं. 'अम्मापिति नामनियम जयणीने । ताहे. मयको कन्ततकतजनितो पुन्छति (ो. घातपदपदार्य कामगरलायवनमामविन्तरसंक्षेपविषयविभागववचनाक्षेपपनिहारलक्षणया व्यायचा व्यापारणा) अपान. वीण च पज्जाए भंगे गमे च पुन्धति, ना, नामी बागति अपेगप्पगारं तप्पमिति च गं पन्द्रं व्याकरण नंबत ने विहिता, तिणाणोवगतोत्ति । ७ २. आधारचला, १५२५ : गमणम्म भगवनो महावीरस्म अम्मापिय पानावश्विना गमणोवासगा यावि होत्या। १. आयारचूला, ११६ : गमणे भगवं महातीरे कामयगोते। तन्मपंगे निष्पिाम ज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा-(१) अम्मापिउनिए "वनमाणे" (२) नाममा "ममणे" (३) "भीम भवन उगलं अचेलयं परिमहं महार" ति पट देवेहि नेपाल "मण मग महावीरे"। २. आधारचूला, १५४१७ : ममपल गयी महावीरम पिमा कानगीने काम पंसिशिपामग्मा एवमाहिनि, तं--() निवा, (B) नग्न लिया, (३) ने लिया । ३. आधारचूला, १५१८: गमन, भगपओ मादीमल भन्मा लामिद-मना निधि पामरजाबमारिरि, 7--14) for: घर, (दिदिता निदा, ifrare | ४. सादाम कामा ६४ : Afriger: :

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