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जीवन का विहंगावलोकन
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तीसरा लक्षण है-संवरण-~~ढांकना। भौतिक दृष्टि वाला व्यक्ति अपनी शारीरिक प्रचेष्टाओं, इन्द्रियों और मन को ढंककर नहीं रख सकता।
४२. से अहिण्णायदंसणे संते।'
-भगवान् का दर्शन समीचीन था । शान्ति उनके कण-कण में विराजमान थी। अध्यात्म का चौथा लक्षण है-सम्यग दर्शन । भगवान् विश्व के सभी पदार्थो, विचारों और घटनाओं को अनेकान्तदृष्टि से देखते थे। इसलिए सत्य उन्हें सहजभाव से उपलब्ध हो जाता। जिसे सत्य उपलब्ध होता है, उसे अशान्ति नहीं होती । अध्यात्म का पांचवां लक्षण है---शान्ति ।
४३. राइं दिवं पि जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति ।
-भगवान रात और दिन-हर क्षण जागरूक रहते थे। अप्रमाद (सतत जागरण) अध्यात्म का छठा लक्षण है। अध्यात्म का सातवां लक्षण
है-समाधि । ११. धर्म की मौलिक आज्ञाएं ४४. से णिच्च णिच्चेहि समिक्ख पण्णे, दीवे व धम्मं समियं उदाहु ।'
-भगवान् ने कैवल्य प्राप्त कर विश्व को नित्य और अनित्य-दोनों दृष्टियों से देखा और धर्म का प्रतिपादन किया। उस धर्म की मूल आज्ञाएं इस प्रकार हैं
४५. सव्वे पाणा ण हंतव्वा ।'
-किसी प्राणी को आहत मत करो।
४६. सव्वे पाणा ण अज्जावेयव्वा ।
-किसी प्राणी पर शासन मत करो। उसे पराधीन मत करो।
१. मायारो : ६।१।११। २. बायारो : हारा४। ३. सूयगडो : ११६४ ४. आयारो : ४११॥ ५. आपारो : ४।१।