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________________ जीवन का विहंगावलोकन २८५ तीसरा लक्षण है-संवरण-~~ढांकना। भौतिक दृष्टि वाला व्यक्ति अपनी शारीरिक प्रचेष्टाओं, इन्द्रियों और मन को ढंककर नहीं रख सकता। ४२. से अहिण्णायदंसणे संते।' -भगवान् का दर्शन समीचीन था । शान्ति उनके कण-कण में विराजमान थी। अध्यात्म का चौथा लक्षण है-सम्यग दर्शन । भगवान् विश्व के सभी पदार्थो, विचारों और घटनाओं को अनेकान्तदृष्टि से देखते थे। इसलिए सत्य उन्हें सहजभाव से उपलब्ध हो जाता। जिसे सत्य उपलब्ध होता है, उसे अशान्ति नहीं होती । अध्यात्म का पांचवां लक्षण है---शान्ति । ४३. राइं दिवं पि जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति । -भगवान रात और दिन-हर क्षण जागरूक रहते थे। अप्रमाद (सतत जागरण) अध्यात्म का छठा लक्षण है। अध्यात्म का सातवां लक्षण है-समाधि । ११. धर्म की मौलिक आज्ञाएं ४४. से णिच्च णिच्चेहि समिक्ख पण्णे, दीवे व धम्मं समियं उदाहु ।' -भगवान् ने कैवल्य प्राप्त कर विश्व को नित्य और अनित्य-दोनों दृष्टियों से देखा और धर्म का प्रतिपादन किया। उस धर्म की मूल आज्ञाएं इस प्रकार हैं ४५. सव्वे पाणा ण हंतव्वा ।' -किसी प्राणी को आहत मत करो। ४६. सव्वे पाणा ण अज्जावेयव्वा । -किसी प्राणी पर शासन मत करो। उसे पराधीन मत करो। १. मायारो : ६।१।११। २. बायारो : हारा४। ३. सूयगडो : ११६४ ४. आयारो : ४११॥ ५. आपारो : ४।१।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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